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जिंदगी एक तमाशा
मकर संक्रन्ति पर्व मनाएं
सर्दी ने हद कर दी
झूठ या सच
हां मेरी ही गलती थी
ज्ञान की पहली किरण
समता ही मुक्ति
झूठ पर सच का मुलम्मा,
मैं धीरे धीरे मर रहा हूँ। 
मातृ दिवस पर माँ की महिमा (दोहे)
मजदूर की कथा व्यथा
इंसान से मैं पेड़ बन जाऊं
जरा ध्यान लगाकर सुनो तो, ये कैसी आवाजें?
अंतर्मन की आवाज, पाँच कविताएं
कीचड़ खा कर पलते लोग
कौन आग लगा रहा दिलों में
होली गीत
आओ हम मतदान करें
बस छोड़ देना तू बुराई
मेरा बचपन