बिखरते रिश्तों को
समेटने की जद्दोजहद में...
मुस्कुराते चेहरे
पर दिल खाली खाली सा
अधूरापन, अकेलापन
जीवन का अहसास लिए
अपनत्व, प्रतीक्षा और संबंध की
एक अदृश्य डोर थामे
बिखरते रिश्तों को
समेटने की जद्दोजहद में
छोड़कर अपनी खुशी
अपनो को खुश करने में
रिश्ते बचाने की कोशिश में
वह चुपचाप सा रहता है
कहना उसको भी आता हैं
पर बेबस नहीं कह पता है
वह पिता, मुखिया या बड़ा भाई।
0 टिप्पणियाँ