सच्चे अश्रु जो बहते परपीड़ा में...
नयन कोर से
बहे जो अश्रु
अपनी पीड़ा में
वह तो खारा पानी है
सच्चे अश्रु
स्वर्ण मोती से
जो बहते है पर पीड़ा में।
देख दुखी
त्रासित जन को
करुणा का बदल
जब हृदय कुंज में छा जाता
मानवता की बगिया में
कमल कुसुम खिल जाता।
धन्य है ओ जो
परपीड़ा में अश्रुपूरित हो जाते
अश्रु जो बहते पर पीड़ा में
वे अश्रु नही गंगाजल हो जाते हैं
वरना तो सब खारे अश्रु पीते-पीते
तेरा मेरा करते-करते ही मर जाते हैं।
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