ज्योति संकल्प की

ज्योति संकल्प की

ज्योतिपर्व दीपावली हार्दिक शुभकामनाएं। सच्ची दीपावली तभी मनेगी, जब हम सब समाज में, देश में प्रेम का, सच्चाई का, न्याय का, करुणा का, मानवीयता का उजाला भर सकें और जल उठे ज्योति संकल्प की सद्भाव की तभी सार्थक दीप जलाना होगा। दीपावली का पर्व कोई एक दिन का पर्व नहीं है, उसके साथ धनतेरस, नरकचौदस, गोवर्धन पूजा, भाईदूज जैसे माध्यम के त्योहार भी जुड़े हुए हैं। सबका अपना विशिष्ट महत्त्व है और उनके से कुछ मूल्यवान संदेश भी हमारे जीवन को गति देते हैं। हर त्योहार साथ अनेकानेक प्रसंग, जननुतियों जुड़ जाती है, अलग-अलग क्षेत्रों में उनके स्वरूप भी परिवर्तित हो जाते हैं, किंतु उनके मूल उद्देश्य तो एक ही होते हैं- हमारे जीवन में उल्लास उमंग भरना, सामाजिक सद्भाव बढ़ाना और एक बेहतर जीवन का बृहत्तर लक्ष्य सामने रखना। दीपावली के पावन पर्व के साथ जुड़े नए वस्त्र, मिठाइयों, दीप, मोमबत्तियाँ, लड़ियों से प्रकाश करना, आतिशबाजी, एक-दूसरे के घर जाकर अभिनंदन करना, उपहार देना आदि अपनी जगह हैं किंतु उसका मूल उ‌द्देश्य, मूल संदेश किसी धर्म विशेष या समुदाय के लिए नहीं, पूरी मानवता के लिए अत्यंत मूल्यवान है, सार्वभौमिक है, शाश्वत है- अंधकार का प्रतिकार, अंधकार का प्रतिरोध, अंधकार के विरुद्ध जूझने का संकल्प, अपने लघु प्रयासों से उजाला लाने का संकल्प। एक छोटा सा 'मि‌ट्टी का दीया' एक विराट संकल्प है, एक ललकार है। और अँधेरा क्या मात्र सूरज की अनुपस्थिति होता है। रात तो रोज आती है। अमावस भी हर माह आती है। दीपावली निश्चय ही एक विशेष संदेश लेकर आती है, एक अत्यंत विराट् प्रतीक बनकर आती है- अँधेरा मात्र सूरज की अनुपस्थिति नहीं है, अमावस की कालिमा नहीं है- यह अँधेरा बहुत से रूप लिये है, यह अंधेरा हर तरफ है, अँधेरा- अन्याय का, शोषण का, दमन का, अज्ञान का, अंधविश्वास का, भेदभाव का, ऊँच-नीच का, संवेदनहीनता का, क्रूरता का, अमानवीयता का-कितने अंधेरे, कैसे कैसे अँधेरे व्यक्ति के जीवन में, समाज के जीवन में, राष्ट्र के जीवन में, समूचे विश्व के जीवन में। इन सब अँधेरों से मनुष्य को ही लड़ना है और ये मनुष्य किसी अन्य ग्रह से धरती पर नहीं उतरता। हमें और आपको ही अँधेरों से जूझने की चुनौती स्वीकार करनी है। क्या हम सचमुच ऐसा करने को तैयार हैं या मात्र मोमबत्तियाँ, लड़ियों जलाकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेंगे।

झाँकिए अपने अंतर्मन में। संवाद कीजिए अपने आप से, अपनी आत्मा से। कहीं आप स्वयं को ही छल तो नाहीं रहे। ढोंग तो नहीं कर रहे। किसी दोहरेपन के शिकार तो नहीं।

इतनी वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद क्या हम समझ पाए कि पूरो धरती के मनुष्यों में एक सा ही रक्त बहता है, जो कुछ समूहों में अवश्य संभव है कि एक भाई का खून दूसरे भाई को न चढ़ पाए और किसी दूसरे धर्म या तथाकथित दूसरी जाति वाले का खून काम आ बेटी होना या बेटा होने में महिला नहीं, पुरुष के गुणसूत्र जिम्मेदार विभाजित है। जाए। होते हैं, किंतु लाखों महिलाओं ने बेटा न होने के कारण अपमान, यातनाएँ घर से निकाली गई, मार दी गई। आज भी ऐसे-ऐसे समाचार मिलते सहीं, हैं, जो पूरे विश्व में हमें शर्मिदा करते हैं।

निश्चय ही हमें त्योहारों के मूल संदेशों की ओर लौटना होगा, हर तरह के अंधेरों से, हर समय जूझने के लिए तैयार रहना होगा। हमारी डिग्रियों कभी भी हमारे ज्ञान का पर्याय नहीं हो सकतीं। हमारे ज्ञान का परिचय तो तभी मिलेगा, जब हम सत्य के प्रति निष्ठावान रहें। इन दिनों सोशल मीडिया पर कितना झूठ, कितनी अफवाहें फैलाई जा रही हैं, हम सब जानते हैं। तो सच्ची दीपावली तभी मनेगी, जब हम सब समाज में, देश में प्रेम का, सच्चाई का, न्याय का, करुणा का, मानवीयता का उजाला भर सकें। उन जीवन-मूल्यों को वापस लौटा सकें, जिनके लिए विश्व हमारे 'महान् भारत' को 'विश्वगुरु' मानता है। 


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