माँ कालरात्रि
नवदुर्गा के नौ स्वरूप सप्तम दिवस कालरात्रि दिवस
सा मित्रांजन संकाश दंष्ट्राञ्चित वरानना । विशाल लोचना नारी बभूव तनुमध्यमा ।। खड्म-पात्र-शिरः छोटै एलंकृत चतुर्भुजा । कबंध-हारमुरसा विभ्राणा शिरसास्त्रजाम् ।।
गाढ़े काजल जैसी काली, बड़े-बड़े दांतों से शोभित मुख, बड़ी-बड़ी आंखे, शरीर क्षीण मध्य, नारी रूप धारण किये, खड्ग, पान पात्र, नरमुण्ड और खेटक से चारों हाथ अलंकृत, गले में मस्तक विहीन देहों की माला और मस्तक में हार पहनी हुई, कालरात्रि देवी का ध्यान करता हूं।
काल को पार किये बिना सदा के लिए उनमें विलीन नहीं हुआ जा सकता और ब्रह्मानन्द की अनुभूति नहीं हो सकती है। कात्यायनी साधक को ब्रह्मबोध से सम्पन्न करना चाहती हैं और काली का रूप धारण करती हैं। इस कालरात्रि की कोख में अनन्त जीवों के अनन्त कर्म बीज होते हुए भी कोई उन्हें देख नहीं पाता, जब तक कि यह मुक्तकेशों वाली, अभय देने वाली दर्शन नहीं देती हैं। क्षेत्र-क्षेत्र के ज्ञान के बाद ही इनका बोध होता है।
अकाल मृत्यु भय निवारण तथा व्यापार वर्द्धन हेतु
'कालरात्रि' की साधना सम्पन्न करने से व्यक्ति के मन से अकाल मृत्यु भय समाप्त होता है तथा यह प्रयोग व्यापार करने वालों के लिये भी अत्यन्त उपयोगी है, इसे सम्पन्न करने पर उनके व्यापार में आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि होती ही है।
नवरात्रि के सातवें दिन इस साधना को सम्पन्न करने से साधक अवश्य सफलता प्राप्त करता ही है।
साधना विधान इस दिन साधक लाल रंग का वस्त्र बिछाकर 'कालरात्रि यंत्र' का स्थापन कर कालरात्रि का ध्यान करें -
करालरूया कालब्जा समानाकृ तिविग्र हर । कालरात्रि शुभं दद्याद देवी चण्डाहहासिनी ।।
फिर यंत्र का संक्षिप्त पूजन कर नैवेद्य चढ़ायें तथा धूप-दीप-अगरबत्ती लगा कर 'हकीक माला' से निम्न मंत्र की 9 माला मंत्र जप करें-
काल रात्रि मंत्र
।। लीं क्रीं हूं ।। दक्षिण काली मंत्र ॥ ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ही ही हूं हूं दक्षिणे कालिके फ्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहर ।।
प्रयोग समाप्ति पर भगवती की आरती सम्पन्न कर प्रसाद का वितरण करें।
0 टिप्पणियाँ