सत्य का पुजारी-गैलेलियो


सत्य का पुजारी-गैलेलियो

        बहुत पुरानी बात है। इटली के पिसा नामक नगर में एक लडका रहता था। एक दिन उसके बूढे पिता का चश्मा टूट गया। लड़के ने खेल-खेल में उस टूटे हुये चश्मे का एक काँच का दुकड़ा उठा लिया और उसे आँख के सामने करके वह नगर की एक ऊँची इमारत को देखने लगा। उसे एक बड़ी अजीब बात दिलाई दी। वह अजीब बात यह थी कि वह इमारत उसे पहले से कुछ बड़ी और पास जान पड़ी। इस तमाशे को देख कर लडके को बडा अचम्भा हुआ।

      बड़े होने पर उसने काँच के उसी प्रकार के दो दुकड़ों को लेकर एक ऐसा यन्त्र बनाया जिसमें से उसे दूर की चीजें और भी पास और बडी दिखायी पड़ने लगी । इस यन्त्र को लेकर इस बार उसने सूर्य को ओर देखा, आसमान को देखा और आकाश के अनगिनत तारों को देखा। उन सब को देख कर उसने लोगो को उनके बारे सें बड़ी अजीब-अजीब बातें बतलाईं।

    वह लड़का जब पढ़-लिख कर बड़ा हुआ तो उसने लोगों से यह भी कहा कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है ओर सुर्य जो कि हमको चलता हुआ दिखाई पडता है, असल में एक स्थान पर ठहरा हुआ है। लेकिन लोगों ने उसकी इस बात को नहीं माना। क्योंकि उसके धर्म-ग्रन्थ बाइबल में पृथ्वी के घूमने की बात नहीं लिखीं थी। लोगों ने उसे अधर्मी कहकर अधिकारियों से शिकायत की। अधिकारी ने उसे जेल में डाल दिया। लेकिन वह मरते दम तक अपनी बात कहता रहा कि पृथ्वी सुर्य के चारों ओर घूमती है।

     उस समय तो लोगों ने उसे पागल और अधर्मी कह कर सजा दी लेकिन आज सारा संसार उसकी इस बात को मानता है। उसके बनाये हुवे यंत्र को देख कर लोगों ने अब ऐसे यंत्र बना लिये हैं कि जिनकी सहायता से कोसों दूर की चीजें ऐसी जान पडती हैं, सानो हमारी नाक के सामने खडी हो। इस यंत्र को टेलिस्कोप या दूरबोन कहते हैं। सुर्य, चद्रमा और नक्षत्रों के बारे में हम आज जो कुछ भी जानते हैँ उसमें से बहुत सा हमें इसी दुरबीन की कृपा से मालूम हुआ है। जिस लडके ने अपने पिता के टूटे हुये चश्मे से ऐसा अच्छा यंत्र बनाया कि आज सारा ससार उसका ऋणी है और सदा रहेगा।

    इस लडके का पूरा नाम गैलेलियो गैलेली था। लेकिन पढे-लिखे लोगो में यह गैलेलियो के नाम से प्रसिद्ध है। गैलेलियो का जन्म 18 फरवरी सन्‌ 1564 में हुआ था। वह अपने पिता का सबसे बड़ा लडका था। उसका पिता विनसेंजो गैलेली गायन विद्या पर किताबें लिख-लिख कर अपना पेट पालता था। लेकिन इस काम में उसे बहुत रुपया नहीं मिलता था। इसलिये उसने अपने बड़े लड़के को कपड़े की दुकान खुलवानी चाही। किन्तु लड़के ने अपने बाप की तरह गायन विद्या ही सीखना पसन्द किया। उसने चित्रों को खींचना और उनमें रग भरना भी सीखा। उसे कविता पढने का बडा शौक था। बह दिन भर तरह-तरह के पेंचदार खिलौने बनाया करता था। ऐसे होनहार और पढने वाले लडके को कपड़े की दुकान में बैठाना, उसकी जिन्दगी बरबाद करना था। इसलिये उसके पिता ने उसे पिसा के विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए भेजा किन्तु यहाँ उसे अपने पिता के कहे अनुसार डाक्टरी पढ़नी पड़ी। क्योकि उन दिनो डाक्टरी की बड़ी माँग थी। काँलेज में आकर गैलेलियो खूब जी लगा कर अपनी पुस्तकें पढने लगा। वह बड़ा तेज लड़का था। उसके मास्टर जो कुछ बताते, उसे वह पूरी तरह समझे बिना कभी न मानता। हरेक बात को खुद सोचता ओर विचारता था। अगर उसे कोई बात उल्टी जान पडती तो बह लोगों से कहे बिना न रहता। कभी-कभी तो वह दो हजार वर्ष पहले से चली आयी अरस्तु जैसे विद्वानों की बातों को भी काट देता था।

    विश्वविद्यालय में, जब वह अभी 20 वर्ष का ही था, गेलीलिओ ने अपना प्रथम वैज्ञानिक-अनुसन्धान किया। कहानी इस तरह है कि पीसा के गिरजे मे छत से लटकते कंदील को उसने डोलते हुए देखा और अपनी नब्ज़ को घडी की टिकटिक के तौर पर इस्तेमाल करते हुए, उसने नोट किया कि कंदील के इस दाये-से-बाये, बाये-से-दाये जाने मे कुछ नियमितता है। किन्तु उसने कुछ परीक्षण किए और, वह उसके इस परिणाम पर पहुँचा कि एक ही लम्बाई के पेण्डुलम, उनको कितने ही ज़ोर से या कितने ही धीरे से गति दी जाए, हमेशा एक ही रफ्तार से इधर-से-उधर, उधर-से-इधर डोलते है।

     उसने इस वैज्ञानिक तथ्य का प्रयोग करने के लिए परामर्श भी दिया कि रोगियों की नब्ज मापने के लिए पैण्डुलम का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। रोगियों को चिकित्सा के लिए आजकल सैकडो तरह के यंत्र बन गये हैं, लेकिन गैलेलियो का यह यंत्र सब से पहला यंत्र था जो कि रोगी के शरीर की परीक्षा करने के लिए डाक्टरों के काम आया।

उसने पेण्डुलम से चलने वाली एक घडी भी उसने 'ईजाद कर दी। पर उसकी रूपरेखा पर कोई अमल शायद नहीं हो सका। कुछ समय बाद ही क्रिक्चन ह्य जेन्स ने मिनटों और सेकण्डो को सही-सही बतानेवाली एक घडी तैयार की थी, जिसमें समय को नियन्त्रित करने के लिए पैण्डुलम का ही इस्तेमाल किया गया था।

     गैलेलियो के माँ-बाप उसे आगे पढ़ाने का खर्च नहीं दे सकते थे, इसलिए बह पढना छोड़ कर फ्लोरेंस चला गया। उन दिनो उसका पिता पलोरेंस में ही रहता था। जब वह चौबीस वर्ष का था तो एक बड़े आदमी की शिफारिश से उसे पिसा की युनिवर्सिटी में प्रोफेसर की जगह मिल गयी। वहाँ वह लड़को को गणित पढ़ाने लगा। अब उसने डाक्टरी की किताबें पढ़ना छोड दिया और अब वह दित-रात गणित व विज्ञान की पुस्तकें पढ़ा करता। इतनी छोटी उम्र में पिसा की युनिवर्सिटी का प्रोफ़ेसर हो जाना बहुत बडी बात थी। युनिवर्सिटी के दूसरे प्रोफेसर उसे अपने साथ रखने के लिए राजी नहीं हुये। ये लोग अरस्तू के पक्के चेले थे और गैलेलियो अरस्तु की बहुत सी बातों को नहीं मानता था। उसने अरस्तु के एक सिद्धान्त को तो बिलकुल ही गलत साबित कर दिखाया।

     अरस्तु ने कहा हैं कि यदि एक ही धातु की बनी दो गेंदें, एक बडी और एक छोटी, एक साथ जमीन पर छोडी जायें तो बड़ी गेंद पहले जमीन पर पहुँचेगी। उसका कहना हैँ कि यदि बड़ी गेंद छोटी से दसगुनी बड़ी हो तो बड़ी गेंद दसगुनी तेजी से नोचे गिरेगी। सैकडो वर्ष तक लोग इस बात को सच मानते चले आये। किसी ने यह जाँच करने को हिम्मत नहीं की कि यह बात सच है कि झूठ। गैलेलियो ऐसा आदमी था जिसने सबसे पहले ऐसा करने की हिम्मत की। उसने अरस्तु के सिद्धान्त को गलत पाया और उसने इसे इस तरह सिद्ध किया।

     गैलेलियो ने युनिवर्सिटी के सारे विद्यार्थिंयो और प्रोफेसरों को इकट्ठे किया। फिर बह अपने साथ एक आध सेर का और दूसरा पाँच सेर का गोला लेकर पिसा की प्रसिद्ध मिनार पर चढ़ गया। जब उसने उन गोलों को मिनार से नोचे छोड़ा तो दोनो एक साथ जमीन पर पहुँचे। देखने वाले दाँतो तले उँगली दबा कर रह गये। अरस्तु ने भूल की। तब तो उसने ओर भो बहुत सी भूलें की होगी। लोगो को यह बात पसन्द नहीं आयी। उन्होंने कहा, 'अरस्तु कभी भूल नहीं कर सकता। गैलेलियों झूठा है? बेचारे गैलेलियो को उनके डर से पिसा छोडना पड़ा। गैलेलियो फिर पिता के पास पहुँचा। यहाँ उसको दो साल तक बडे कष्ट भोगने पड़े। उसके पिता की मृत्यु हो गयी। घर में उसकी माँ थी, एक भाई ओर दो बहनें थीं। उसे उन सब के भरण-पोषण के लिए पैसा कमाना पड़ता था।

     दो साल के बाद वह पैडुआ में गणित का प्रोफेसर बना दिया गया। इस समय उसकी उम्र सत्ताईस साल की थी। पैडुआ के लोगो ने इस पढे-लिखे विद्वान नवयुवक की बडी कद्र की। कुछ दिनों के भीतर सारी इटली में उसका नाम फैल गया। उसके भाषणों को सुनते के लिए दूर-दूर से लोग आते थे। कभी-कभी तो उसे खुले मैदान में हजारो आदमियों के बीच बोलना पड़ता था। उसका अध्ययन इतना बढ़ा-चढ़ा था कि उसे इटली के बहुत से कवियों की सारी रचनाएँ जबानी याद थी। किन्तु उसने कभी अपनी विद्या पर घमड नहीं किया। वह कहा करता था कि उसे कभी कोई इतना मूर्ख आदमी नही मिला, जिससे उसने कुछ न कुछ सीखा न हो।

    सन्‌ 1606 में गैलेलियों ने एक ऐसा दूरबीन बनाया जो आकाश को देखने का काम् दे सकता था। इस दुरबीन से चीजें तीगुनी बडो और तिगुनी पास दिखायी पडती थीं। सब से पहले गैलेलियो ने इस दुरबीत से जिस चीज को देखा वह चन्द्रमा था। देखने से पता चला कि चन्द्रमा में भी हमारी पृथ्वी की तरह बड़े-बड़े पहाड़ और खाई-खन्‍्दक हैं। अरस्तु के चेलों ने इस बात पर विश्वास नहीं किया। वे लोग अपनी बात पर अड़े रहे और कहते रहे कि चन्द्रमा थाली की तरह चपटा और गोल है ।

    दूरबीन की सहायता से गैलेलियो ने इस बात का भी पता लगाया कि बृहस्पति नाम का ग्रह अकेला नहीं है, उसके चारों ओर चार छोटे ग्रह और घूमते हैँ। इस बात को सुन कर गैलेलियो के शत्रुओ के क्रोध का ठिकाना नहीं रहा। सब लोग एक स्वर से चिल्लाये कि ऐसो बात कभी नहीं हो सकती। उनमें से एक ने ललकार कर कहा, हमारे सिर में केवल सात द्वार हैं-दो आँखें, दो कान, दो नथुने और एक मुंह, और सप्ताह में भी केवल सात दिन होते हैँ। इसलिए आकाश में सात से अधिक ग्रह नहीं हो सकते। तब गैलेलियो ने अपनी दुरबीन से उन लोगों को आकाश के ग्रह दिखाये। किन्तु उन्होंने कहा, 'अरे, यह सब तो फिजूल की बातें हैं। जब ये ग्रह हमें खाली आँखो से नहीं दिखाई पड़ते तो उनका पृथ्वी पर कोई असर नहों पड़ सकता। और जब पृथ्वी पर उनका कोई असर नहीं पड़ता तो वे आकाश में हो कैसे सकते हैं।'

     सन्‌ 1611 में गेलेलियो लोगों को अपनी दूरबीन दिखाने रोम गया और जब तक गेलेलियो ने बाइबिल में लिखी बातों का विरोध करना शुरू नहीं किया तब तक सब लोग बड़े ध्यान से उसकी बातें सुनते रहे। ईसाइयों के धर्मे-ग्रन्थो में लिखा है कि पृथ्वी सारी सृष्टी के बीच टिकी हुई है और आकाश में जितने पिण्ड हैँ वे सब उसके चारों ओर घूमते हैं।

    उस समय आज कल की तरह यह कोई नहीं जानता था कि सुर्य पृथ्वी के चारों ओर नहीं घुमता, बल्कि पृथ्वी सुर्य के चारों ओर घूमती है। यूरोप में सब से पहले कोपरनिकस नाम के ज्योतिषी ने इस बात की खोज की। इस ज्योतिषी का जन्म पंद्रहवीं शताब्दी में हुआ था। किन्तु हमारे देश में भास्कराचार्य नाम के ज्योतिषी ने बहुत दिनो पहले लोगों को यह बतला दिया था कि पृथ्वी सूर्य के चारो ओर घूमती है। यह बात तो बिलकुल ठीक है कि कोपरनिकस को भास्करा- चार्य की इस खोज का हाल मालूम नही था। उसके बाद इटली में जब गैलेलियो ने जन्म लिया तो उसने भी लोगों से यही बात कही, किन्तु उन दिनों लोग धर्म के नाम पर ऐसे पागल हो रहे थे कि उन्हे सच और झूठ, ऊँच और नीच का कुछ भी ज्ञान नहीं था। गैलेलियो की बात सुन कर उन्होने कहा, यह आदसी विधर्मी है। बाइबिल के विरुद्ध प्रचार करता है।' साथ ही ईसाई पादरियो ने यह आज्ञा निकलवा दी कि जो कोई कोपरनिकस की किताबों को पढ़ेगा या उसके मत का प्रचार करेगा उसे राजा की ओर से कठोर दण्ड दिया जायेगा। गैलेलियो को यह बात बहुत बुरो लगी। उसने उनकी बुद्धि पर तरस खा कर कहा, ईश्वर ने हमें बुद्धि सत्य की खोज करने को दी है, न कि अज्ञान के अघेरे में फिरते रहने के लिए किन्तु जब लोगो ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया तो वह रोम छोड़ कर फ्लोरेंस चला गया।

    इसके बाद गैलेलियो ने सोलह वर्ष तक अपना पठन-पाठन जारी रखा। उसने आकाश के ग्रह-नक्षत्रो के सबंध में नई-नेई 5 खोजें की। फिर उसने ज्योतिष-शास्त्र पर एक किताब लिखी। वह किताब सन्‌ 1632 में छपी। इसको पढ़ कर लोगो ने गैलेलियो की बड़ी प्रशसा की। अब लोग उसकी बातों को मानने को तैयार जान पड़े। लेकिन गैलेलियो के शत्रु उसे नीचा दिखाने के प्रयत्न में ही लगे रहे। उन्होने राजा को गैलेलियो के विरुद्ध भड़काना शुरू किया कि गैलेलियों अधर्मी हैं और बाइबिल में लिखी बातों को नहीं मानता। तब राजा की आज्ञा से गैलेलियो की लिखी हुई किताब की सब प्रतियाँ इफट्ठी कर के रोम पहुँचायी गयी। उसके थोडे दिनो बाद स्वयं गैलेलियो भी अपने ऊपर लगाये गये जुर्मो को सफाई देने के लिए रोम पकड़ कर ले जाया गया।

    सन्‌ 1633 की बोसवीं जनवरी को बूढ़ा गैलेलियो रोम के लिए रवाना हुआ। वह इतना कमजोर था कि एक पालकी में लाद कर उसे रोम पहुँचाया गया। वहाँ उसे जबर्दस्ती घुटने टेक कर इस बात की कसम खानी पडी कि वह अब कभी इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती हैँ।

    मैं, गैलीलिओ गेलिलाई--स्वर्गीय विसेजिओ गेलिलाई का पुत्र, फ्लॉरेन्स का निवासी, उम्र सत्तर साल--क्चहरी में हाजिर होकर अपने असत्य सिद्धान्त का त्याग करता हूं कि सूर्य ब्रह्मांड की गतिविधि का केन्द्र है (और स्वयं स्थिर है) । मैं कसम खाकर कहता हूं कि इस सिद्धान्त को अब मैं कभी नहीं मानूंगा, इसका समर्थन-प्रतिपादन भी अब मैं किसी रूप में नहीं करूंगा। कहते हैं कि जिस समय वह कसम खा कर अपने घुटनों पर से उठा तो वह फुसफुसाया-- पृथ्वी फिर भी घूमती है!

    जिन लोगो ने गेलेलियो का फेंसला किया वे इस सबंध सें कुछ भी नहीं जानते थे। उन्होने गैलेलियो को बाईस दिन तक जेल सें रखा। उसके बाद वह अपने घर में ही कैदी बना कर भेजा गया। अपने घर के भीतर बन्द रह कर उसने बहुत सी नई-नई खोजें कीं और कई अच्छी पुस्तकें लिखी।  अंत में अधिक पढने से उसके नेत्रों की ज्योति चली गयी। वह अन्धा हो गया। जिस आदमी ने आकाश के सुर्य, चन्द्र और नक्षत्रों को दिखा कर हमें परम पिता परमेश्वर की रची सृष्टि दिखाई वह अब स्वयं उनको देखने में असमर्थ हो गया। 78 वर्ष फी उम्र में गैलेलियो मर गया। उसकी इच्छा थी कि वह फ्लोरेंस में अपने घर के कब्रिस्तान में दफनाया जाये। किन्तु ईसाई पादरियों ले ऐसा नही होने दिया। इसलिए गेलेलियो एक साधारण से गिरजें के एक कोने में गाड़ दिया गया। उसके सौ वर्ष बाद इटली के बड़े-बड़े विद्वानों को उपस्थिति में गेलेलियो की अस्थियाँ वहाँ से हटाई जा कर बडी धूमधाम के साथ एक दूसरे स्थान में गाडी गई और उन अस्थियों के ऊपर एक सुन्दर स्मारक बनवा दिया गया।

सच है, जल्दी हो या देर, सत्य की सदा विजय होती है। 

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