जय माँ कात्यायन, नवदुर्गा के नौ स्वरूप षष्ठम दिवस कात्यायनी दिवस

षष्ठम दिवस: 

जय माँ कात्यायनी

नवदुर्गा के नौ स्वरूप षष्ठम दिवस कात्यायनी दिवस

ॐ वह गरुड़ के कमल के समान हैं और रत्नजटित कुण्डलों से सुशोभित हैं। जिनके नेत्र भावपूर्ण हैं और जो श्रेष्ठ भैंसों पर विराजमान हैं, उन्हें मैं प्रणाम करता हूँ। शंख, चक्र, तलवार, भाला, बाण, धनुष और बरछी धारण किए हुए हैं। अपनी तर्जनी से चन्द्रमा को अपनी भुजाओं में धारण किए हुए हैं।


रक्त मणि जैसे वर्ण (पीला) वाली मणिमय कुण्डल शोभित, भावपूर्ण नेत्रों वाली, महिष के मस्तक पर सवार कात्यायनी को नमस्कार, जो अपने हाथों में शंख, चक्र, कृपाण, खेटक, बाण, धनुष और शूल धारण की हुई हैं। जिनके मस्तक पर चन्द्रमा विराजते हैं, ऐसी कात्यायनी देवी का ध्यान करता हूं।

'एकोऽहम् बहुस्याम्' की चिन्मयी शक्ति कात्यायनी हैं। संसार के हित के लिए और जगत की शक्ति के साकार रूप की सत्ता को प्रतिष्ठित करने के लिए कात्यायनी का अवतार हुआ है। ज्ञानमय भूमि में रहकर जो तप और कर्म की धारा चलती है, वही कात्यायनी हैं। जब साधक साधना में ब्रह्मबोध को प्राप्त करना चाहता है और आनन्द लोक में विचरण करता है तब उसे कात्यायिनी शक्ति से साक्षात्कार करने का अवसर मिलता है।

कात्यायनी का रूप दशभुजा का है, दस ओर से कात्यायनी। इन्द्रियों को ब्रह्म की सत्ता से जोड़े रखती है, यह मानव को व्यष्टि चेतना, क्षुद्र जीवन चेतना और विश्व चेतना से अवगत कराती है। यह साधक को परमसुख की शक्ति से भी परिचित कराती है।

शत्रु समाप्ति तथा अनुकूलता प्राप्ति हेतु यदि व्यक्ति के आसपास विपरीत वातावरण निर्मित हो रहा हों और उसके शत्रु दिन-प्रतिदिन उसे हानि पहुंचाने के उपाय करते जा रहे हों, तो उसके लिए 'कात्यायनी प्रयोग' सर्वश्रेष्ठ प्रयोग है। कात्यायनी रौद्र स्वरूपा है और इनको भगवती दुर्गा का छठा स्वरूप माना जाता है।

साधना विधान: सामने रखे बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछा कर उस पर काजल से गोल घेरा बनाकर उसमें अपने शत्रु का नाम लिखें तथा उस पर 'शत्रु मर्दन यंत्र' स्थापित करें, इसके बाद कात्यायनी देवी का ध्यान करें-

चन्द्रासोज्ज्वक राशार्दूलवरवाहना ।

राक्षसों का वध करने वाली देवी कात्यायनी आपको शुभता प्रदान करें

ध्यान के बाद यंत्र का पूजन कर नैवेद्य अर्पित करें तथा 'काली हकीक माला' से यंत्र के समक्ष निम्न मंत्र का 13 माला मंत्र जप करें

मंत्र

.. ॐ क्रौं क्रौं कात्यायन्यै क्रौं क्रा फट्।।

मंत्र जप के पश्चात् आरती सम्पन्न कर प्रसाद का वितरण करें।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ