स्कंदमाता
नवदुर्गा के नौ स्वरूप पंचम दिवस स्कंदमाता
ॐ वरदान और निर्भयता से संपन्न, द्विभुजी स्कंद माता का स्मरण करना चाहिए।
वह श्वेत वर्ण की थीं और विविध आभूषणों से सुसज्जित थीं। उन्होंने दिव्य वस्त्र धारण किए हुए थे और उनके बाएँ कंधे पर एक सुंदर कन्या विराजमान थी। प्रसन्न मुख वाली, वे सदैव जगत की माता और सुख प्रदान करने वाली थीं। उनमें एक मोटी, उभरी हुई छाती के सभी गुण विद्यमान थे। अतः विंध्य में निवास करने वाली स्कंद माता का ध्यान करना चाहिए।
बराभय युक्त दो भुजाओं वाली कार्तिकय जननी को सदा स्मरण करें। वह गौरवर्ण की हैं। नाना अलंकारों से विभूषित दिव्य वस्त्र पहने, बायीं गोद में सुपुत्र को लिए, सदा प्रसन्न, जग का उद्धार करने वाली सभी सुलक्षणों से युक्त और पीनोन्नत स्तनों वाली सर्वदा विन्ध्य पर्वत पर रहने वाली स्कन्दमाता का इस प्रकार, ध्यान करें।
शिव की अमोघ शक्ति को कल्याणवाचक कहा गया है। कल्याण का शिवमय रूप शक्ति है। यह दिव्यवीर्य का वाचक है। स्कन्द माता इस शक्ति की वाहिका है, जो आत्म चेतना बालिका रूप में शैल के रूप में हृदय में जग रही थी, जो आत्म चैतना किशोरी ब्रह्मचारिणी के रूप में, उग्र तपस्विनी चन्द्र
घण्टा के रूप में झरना बहा रही थीं, वह आज प्रज्ञामय के मधुर स्पर्श से नया यौवन पाकर ध्यान गंभीर रूप में प्रज्ञा के नीर्य को हृदय में संजोकर स्कन्दमाता बनीं। उनके पुत्र के छः मुख पर प्रत्येक मुख में शिव का रूप और छटा निखर रही है। स्कन्द माता असुर वध कारिणी है।
गृहस्थ सुख-शांति में वृद्धि तथा कलह समाप्ति हेतु
नवरात्रि के पांचवे दिन भगवती जगदम्बा के 'स्कन्द माता' स्वरूप की साधना सम्पन्न होती है। गृहस्थ सुख में न्यूनता हो या घर में कलह निरन्तर बना रहता हो या घर के सभी सदस्यों के मध्य कटुता और द्वेष उत्पन्न हो गया हो, तो उन सब में आपस में परस्पर प्रेम की वृद्धि तथा सुख-शांति के लिए इस प्रयोग को सम्पन्न किया जाता है।.
साधना विधान : अपने सामने लकड़ी का बाजोट रख कर
उसके ऊपर पीले रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर कुंकुम से 'ॐ' लिखें, फिर उस पर किसी ताम्रपात्र में मंत्र सिद्ध 'प्राण प्रतिष्ठा युक्त गृहस्थ सुख यंत्र' को स्थापित कर भगवती जगदम्बा के स्कन्द दैवीय स्वरूप का ध्यान करें -
सिंहासन पर सदैव दो कमल पुष्प विराजमान रहते हैं। देवी स्कंदमाता सदैव मंगल प्रदान करें।
यंत्र का पूजन कर नैवेद्य अर्पित करें तथा 101-लाल रंग के फूल निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए चढ़ायें -
मंत्र
.. ॐ स्कन्दायै देवि ॐ ।।
प्रयोग समाप्ति पर भगवती की आरती सम्पन्न करें तथा प्रसाद का वितरण करें।
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