जय माँ कुष्मांडा

जय माँ कुष्मांडा

नवदुर्गा के नौ स्वरूप चतुर्थ दिवस कुष्मांडा दिवस, 

भूत में कृष्णमांडा नामक एक दंतहीन बर्बर पर्वत है। उसकी नौ महीने तक पूजा की जाती है और वह सभी मनोकामनाएँ पूरी करती है।

कूष्माण्डा पर्वतवासिनी, शव के आसन पर आसीन, बड़े-बड़े दांतों वाली, नीचकुल के जीवों को भी शरणदायिनी, जिनकी पूजा करने से नौ महीने में सभी अभीष्ट पूर्ण होते हैं।

साधक जब तप करते समय सम्प्रज्ञात योग की अवस्था में पहुंचता है, उस समय परम सत्य की अनुभूति होती है और इसी अनुभूति को महाशक्ति के नाम से सम्बोधित किया जाता है। यह आनन्द लोक के सिन्धु और बिन्दु को उद्घाटित करती हैं, यह भाव, रस और ज्योति से परिपूर्ण हैं। समस्त विश्व को यह मंगल से भर देती हैं, यह मानव' के तमसाच्छन्न हृदय में दिव्य ज्योति का सञ्चार करती है।

सुख-सौभाग्य, धन-धान्य तथा ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु नवरात्रि के चतुर्थ दिवस 'कूष्माण्डा' की साधना सम्पन्न की जाती है। कूष्माण्डा प्रयोग सम्पन्न करने बाले साधक के जीवन में धन-धान्य, ऐश्वर्य, सुख-सौभाग्य आदि की कमी नहीं रहती है। कूष्माण्डा प्रयोग गृहस्थ साधकों के लिये सौभाग्य प्राप्ति हेतु सर्वश्रेष्ठ प्रयोग है।

साधना विधान: साधक पीले रंग का वस्त्र बिछा कर उस पर किसी ताम्रपात्र में 'सौभाग्यप्रदा यंत्र' स्थापित कर कूष्माण्डा का ध्यान करें -

हे कुष्मांडा, आप अपने करकमलों में मदिरा से भरा हुआ तथा रूठी से भरा हुआ घड़ा धारण करती हैं, आपको नमस्कार है।

फिर यंत्र का संक्षिप्त पूजन कर, नैवेद्य अर्पण कर, 108 सफेद पुष्प चढ़ाते हुए निम्न मंत्र का जप करें-

मंत्र

।।ॐ क्रीं कूष्माण्डये क्रीं ॐ ।।

प्रयोग समाप्ति पर भगवती की आरती सम्पन्न कर प्रसाद का वितरण करें।

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