चंद्रघण्टा माँ
नवदुर्गा के नौ स्वरूप तृतीय दिवस:
व्याघ्र चर्माम्बरा क्रूरा गजचर्मोत्तरीयका ।
मुण्डमालावरा बोरा शुष्कवापी समोदरा ।।
खड् प्रयाशधरातीव भीषणा भयदायिनी ।
खट्वांगंधारिणी रौद्रा कालरात्रिरिवापरा ।।
मंत्र
विस्तीर्णवदना जिह्वां चालयंती मुहुर्मुहः ।
विस्तार जघना वेगाज्जघाना सुरसैनिकान् ।।
व्याघ्र छाल जिनका वस्त्र है, गज चर्म जिनका उत्तरीय है, जो क्रूर है, मुण्डों की माला धारण करती हैं, भीषण हैं, जलहीन सरोवर जैसा जिनका उंदरं है, खड्ग और पाश धारण करती हैं, बहुत ही भीषण, भयावनी, खट्वांग धारिणी, द्वितीय कालरात्रि जैसी भीषण, विस्तीर्ण वदन, निरन्तर जिह्वा चलाने वाली, विस्तृत जघना, जिन्होंने वेग से असुर के सैन्यों का हनन किया था, वे देवी चंन्द्रघण्टा है।
देवी का 'चन्द्र' रूप' जो मन का स्वामी है, यहां 'घण्टा' नाद का प्रतीक है। इन्हें मनं और वाक्य के संयम करने वाली देवी के नाम से जाना जाता है। मानव जब तपस्या के द्वारा मन और वाणी को संयम करं अनाहत की ध्वनि सुनता है, तब चन्द्रघण्टा की कृपा का व्यावहारिक अनुभव होता है, इनकी कृपा से मानव संयत और शांत होता है, देवी मानव को ब्रह्मानन्द की अनुभूति' के लोक तक सहज ही ले जाती है।
समस्त बाधाओं के निराकरण तथा आकस्मिक धन प्राप्ति हेतु 'चन्द्रघंटा' की साधना नवरात्रि के तृतीय दिवस पर सम्पन्न की जाती है। चन्द्रघंटा देवी रौद्र स्वरूपा हैं, जो साधक के समस्त दोष तथा पाप का क्षय कर उसके जीवन की सभी बाधाओं को समाप्त करती हैं। भगवती चन्द्रघंटा की कृपा प्राप्स कर साधक अपने आपमें अत्यन्त समृद्धशाली और ऐश्वर्यवान हो जाता है। आकस्मिक धन प्राप्ति और गुप्त धन प्राप्ति के लिये यह प्रयोग अत्यन्त श्रेष्ठ और अद्वितीय प्रयोग है।
साधना विधान लकड़ी के बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर किसी ताम्रपात्र में 'चन्द्रघंटा दुर्गा यंत्र' स्थापित कर चन्द्रघंटा देवी का ध्यान करें-
अखण्ड जप्रवरारू ढ़ा चण्डकोपार्भटीयुता । प्रसादं तनुतां महां चन्द्रघण्टेति विश्रुता ।।
ध्यान के पश्चात् साधक यंत्र का संक्षिस पूजन कर कोई भी लाल रंग का फल अर्पित करें। इसके बाद 51 लाल पुष्प अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का जप करें.
चन्द्रघण्टा दिवस
।। ॐ चंचं चं चन्द्रघण्टायें हूं ।।
प्रयोग समाप्ति पर आरती करें।
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