अखण्ड सुहाग का प्रतिमान व्रत-करवा चौथ

अखण्ड सुहाग का प्रतिमान व्रत-करवा चौथ


भारतीय हिन्दू स्त्रियों के लिये 'करवा चौथ' का व्रत अखण्ड सुहाग को देने वाला माना जाता है. विवाहित स्त्रियाँ इस दिन अपने पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की मंगल कामना करके भगवान् रजनीश (चन्द्रमा) को अर्घ्य अर्पित कर व्रत को पूर्ण करती है. स्त्रियों में इस दिन के प्रति इतना अधिक श्रद्धाभाव होता है कि वे कई दिन पूर्व से ही इस व्रत की तैयारी प्रारम्भ कर देती हैं. यह व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष की चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को स्त्रियों द्वारा मनाया जाने वाला 'करवा चौथ' कहलाता है. यह सौभाग्यवती स्त्रियों के लिये पवित्र पर्व माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार पतिव्रता स्त्रियों के लिये पति ही व्रत, पूजा-पाठ एवं ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि से श्रेष्ठ होता है. सौभाग्यवती स्त्री के लिये पति ही सर्वस्य है पतिव्रता स्त्रियों के लिये तीर्थ, व्रत, नियम, यज्ञ, पूजा आदि सब कुछ पतिदेव ही है. पति के सिवा खियों के लिये ऐसा कोई भी तीर्थ नहीं, जो इस लोक में सुख शान्ति देने वाला हो या परलोक में स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करने वाला हो. अर्थात् स्त्रियों के लिये पति ही परमेश्वर है. खियों के लिये उचित है कि वह सच्चे भाव से पति सेवा में प्रवृत होकर प्रतिदिन मन, कर्म, वचन, शरीर और क्रिया द्वारा पति का ही आह्वान करे और तत्पर होकर श्रेष्ठ भाव से सदा पतिदेव का पूजन करे. प्रतिदिन प्रातःकाल शीघ्र उठकर चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करे. अगर पतिदेव संतुष्ट रहते हैं तो समस्त देवी-देवता उस स्त्री पर सदैव प्रसत्र रहते हैं. इसी प्रकार सौभाग्यवती-पतिव्रता खियों को 'करवा चौथ' के दिन पति के स्वास्थ्य, दीर्घायु, विद्या, बल एवं मंगल कामना हेतु यह व्रत्त विधि विधान से रखना चाहिए. यह हर स्त्री का प्रथम धर्म है. इस व्रत के रखने के लिये शास्त्रानुसार स्त्रियां को प्रात: काल स्नानादि के बाद घर-परिवार के बड़े बुजुर्ग, सास-ससुर व पतिदेव को प्रणाम करना चाहिए, तत्पश्चात् आचमन करके पति, पुत्र-पौत्र तथा सुख-सौभाग्य की इच्छा का संकल्प लेकर व्रत प्रारम्भ करना चाहिए.


इस दिन गणेश तथा चन्द्रमा के पूजन करने का विधान है. स्त्रियां पूरे दिन व्रत धारण कर चन्द्रोदय के बाद श्रृङ्गारित होकर चन्द्रमा के दर्शन कर अर्ध्य चढ़ाये तथा चलनी में दीप प्रज्ज्वलित कर चन्द्र-दर्शन के बाद अपने पति के दर्शन उस चलनी से करके उनकी चरण वन्दना करके प्रणाम करे. तत्पश्चात् पतिदेव के हाथ से जलार्ध्य लेकर व्रत पारण करके पतिदेव को भोजन खिलाकर स्वयं भोजनादि ग्रहण कर व्रत को पूर्ण करे. ऐसा करने से पति के दीर्घायु होने से खी सौभाग्यवती होती है. परिवार में सुख-शान्ति व आरोग्यता रहती है, किसी भी प्रकार का कोई कष्ट क्लेश नहीं होता. सास-ससुर व बड़े बुजुर्गों का उस स्त्री पर सदैव स्नेहिल आशीर्वाद बना रहता है.


कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चौथ को केवल चन्द्रदेवता की ही पूजा नहीं होती, बल्कि शिव-पार्वती और स्वामि कार्तिकेय को भी पूजा जाता है. शिव-पार्वती की पूजा विधान इस हेतु किया जाता है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान् शंकर को प्राप्त कर अखण्ड सौभाग्य प्राप्त किया वैसा ही उन्हें भी मिले. वैसे भी गौरी पूजन का कुआरी कन्याओं और विवाहिता स्त्रियों के लिये विशेष माहात्म्य है.


यह व्रत अनेक पतिव्रता खियों ने श्रद्धापूर्वक रखा था. भगवान श्रीकृष्ण के कथानुसार द्रोपदी ने भी 'करवा चौथ' व्रत रखकर महाभारत का युद्ध कौरवों से पाण्डवों ने जीता था. यह पवित्र व्रत सौभाग्य और शुभ संतान देने वाला भी माना जाता है. हर पतिव्रता स्त्री का धर्म है कि सुख-सौभाग्य में वृद्धि करने वाले इस व्रत को श्रद्धाभाव से रखकर अपने दाम्पत्य जीवन को सुखी-समृद्ध व खुशहाल बनावें. इस सन्दर्भ में जो कथा शिवजी ने पार्वती को सुनायी थी, वह इस प्रकार है-


कथा : इन्द्रप्रस्थ नगरी में वेदशर्मा नामक एक विद्वान् ब्राहाण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी जिसका नाम वीरावती था. उसका विवाह सुदर्शन नामक एक ब्राह्मण के साथ हुआ. ब्राह्मण के सभी पुत्र की विवाहित थे. एक बार करवाचौथ के व्रत के समय वीरावती भाभियों ने तो पूर्ण विधि से व्रत किया, किन्तु वीरावति सारा दिन निर्जल रहकर भूख न सह सकी तथा निडाल होकर बैठ गयी. भाइयों की चिन्ता पर भाभियों ने बताया कि वीरावती भूख से पीड़ित है. करवाचौथ का व्रत चन्द्रमा देखकर ही खोलेगी. यह सुनकर भाइयों ने बाहर खेतों में जाकर आग जलायी तथा ऊपर कपड़ा तानकर चन्द्रमा-जैसा दृश्य बना दिया, फिर जाकर बहन से कहा कि चाँद निकल आया है, अर्घ्य दे दो. यह सुनकर वीरावती ने अर्घ्य देकर खाना खा लिया. नकली बन्द्रमा को अर्ध्य देने से उसका व्रत खण्डित हो गया तथा उसका पति अचानक बीमार पड़ गया. वह ठीक न हो सका. एक बार इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी करवचौथ का व्रत करने पृथ्वी पर आयीं. इसका पता लगने पर वीरावती ने जाकर इन्द्राणी से प्रार्थना की कि उसके पति के ठीक होने का उपाय बतायें. इन्द्राणी ने कहा कि तेरे पति की यह दशा तेरी ओर से रखे गये करवाचौथ व्रत के खण्डित हो जाने के कारण हुई है. यदि तू करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि-विधान से बिना खण्डित किये करेगी तो तेरा पति ठीक हो जायगा. वीरावती ने करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि से सम्पत्र किया, फलस्वरूप से प्रचलित है. उसका पति बिल्कुल ठीक हो गया. करवाचौथ का व्रत उसी समय से प्रचलित है।

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