रानी दुर्गावती

एक वीरांगना रानी दुर्गावती

मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर के पास में गढामण्डला का एक किला है। सोलहवीं सदी में इस जगह को गोंडवाना कहा जाता था। दुर्गावती इसी गोंडवाना राज्य के राजा दलपतशाह की वीर पत्नी थीं।

दुर्गावती बुन्देलखण्ड के चन्देल राजपूत राजा कीर्तिसिंह की बेटी थी। दुर्गावती बहुत सुन्दर तथा गुणवती थी। बचपन से ही उसे घुड़सवारी करने, तीर-कमान घलाने, तलवारबाजी करने, बन्दूक, तमञ्चा चलाने का शौक था। दुर्गावती की सुन्दरता तथा वीरता की चर्चा पूरे गोंडवाना तथा बुन्देलखण्ड में फैल गयी थी। बड़े-बड़े राजा उसे अपनी रानी बनाने के सपने देखने लगे। गढ़ामण्डला के राजा दलपतशाह ने तो निश्चय किया कि यह विवाह करेगा, तो दुर्गावती से ही।

दलपतशाह ने दुर्गावती के पिता कीर्तिसिंह को विवाह का प्रस्ताव भिजवाया। दुर्गावती एक राजपूत कन्या थी, इसलिए उसके पिता उसका विवाह किसी क्षत्रिय युवक से ही करना चाहते थे। कीर्ति सिंह ने दलपतशाह को लिख भेजा कि उनके जैसे गोड युवक को एक राजपूत क्षत्राणी से विवाह की इच्छा नहीं करनी चाहिए। हाँ, यदि दलपतशाह कालिञ्चार की सेना के साथ लड़ाई में जीत गये, तो यह दुर्गावती को जीतकर उसके साथ विवाह कर सकेंगे, अन्यथा नहीं।

दलपतशाह के लिए यह एक कठिन चुनौती थी, परन्तु दलपतशाह भी हार माननेवाले नहीं थे। उन्होंने कालिञ्जर पर चढ़ाई कर दी। दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अन्त में दलपतशाह की विजय हुई। दलपतशाह ने दुर्गावती से विवाह कर लिया।

दुर्गावती गढ़ामण्डल की रानी बनीं। विवाह के बाद उनके एक पुत्र वीरनारायण हुआ। वीरनारायण अभी चार साल का ही था कि अचानक बीमारी से दलपतशाह की मृत्यु हो गयी। दुर्गावती पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा। साहसी रानी ने हिम्मत नहीं हारी। बड़े धैर्य और साहस के साथ अपने राज्य की देखभाल करती रहीं। उनके राज्य में प्रजा सुखी थी। प्रजा को रानी पर पूरा विश्वास था।

इधर शत्रु राज्यों की निगाहें गौडवाना राज्य पर लगी रहती थीं। माण्डू के सुलतान बाजबहादुर ने रानी पर हमला कर दिया। रानी ने उसको युद्ध में हरा दिया। इस प्रकार अन्य पड़ोसी राज्यों से भी वह लोहा लेती रहीं।

उन दिनों उत्तर भारत में अकबर का राज्य था उसने अनेक राज्यों को अपने राज्य में मिला लिया था। रानी दुर्गावती के सुन्दर रूप का वर्णन उसके अच्छे राजकाज की कीर्ति भी उसने सुन रखी थी। यह गढ़ामण्डला को अपने राज्य में मिलाने की सोचने लगा।

सन् १५६४ में अकबर ने अपने सेनापति आसफ खी को एक बड़ी सेना के साथ गोंडवाना पर आक्रमण करने के लिए भेजा। दुर्गावती की सेना अकबर की सेना के मुकाबले काफी कम थीः परन्तु दुर्गावती की सेना छापामार युद्ध करने में बहुत निपुण थी। दुर्गावती की छापामार सेना से आसफ खाँ परेशान हो गया। अब उसने चालाकी करने की सोची। दुर्गावती की सेना के कुछ लोगों को अपनी ओर मिला लिया। दुर्गावती को ऐन मौके पर पता चल गया। उसने गद्दारी करनेवालों को सख्त सजा दी और शत्रु को मुँह की खानी पड़ी।

अब आसफ खाँ ने गढ़ा से पश्चिम में भेड़ाघाट से नर्मदा वो चढ़ाय की ओर मोर्चा लगाया। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध होने लगा। स्वयं आसफ खीं रानी का रणचण्डी रूप देखकर काँप गया। रानी के दुर्भाग्य से उसकी सेना पीछे से गढ़ामण्डला की नदी और बाकी तीनों ओर से आत्सकों की सेना से घिर गयी। तभी अचानक बेमौसम ही नदी में बाढ़ आ गयी। चीरनारायण युद्ध में घायल हो गया। रानी ने अपने विश्वासी सरदारों के संरक्षण में उसे चौरागढ़ पहुँचाने का आदेश दिया। दुर्गावती अपने बचे हुए सैनिकों को लेकर मोर्चे पर डट गयी। शत्रु की सेना चौगुनी थी। अचानक एक तीर रानी की आँख में आकर लगा। रानी ने उसे अपने हाथ से खींचकर बाहर निकाल दिया। असीम दर्द सहते हुए रानी ने अपने घोड़े की लगाम दाँतों से थाम ली और दोनों हाथी से तलवार चलाने लगी।

शत्रु कट-कटकर गिरने लगे। तभी एक तीर रामी की गर्दन में आकर लगा। रानी घोडे से गिर गयी। शत्रु ने चारों ओर से उसे घेर लिया। इससे पहले कोई रानी को छू सके, रानी ने अपनी कटार अपने सीने में भोंक ली। रानी वीरगति को प्राप्त हो गयी।

दुर्गावती आजीवन अपने देश की स्वाधीनता की रक्षा करती रहीं। वह अल्प आयु में ही स्वर्ग सिधार गयी थीं, परन्तु उनकी जीवन-गाथा आज भी इतिहास के पन्नों में अमर है।


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