जय माँ ब्रह्मचारिणी
नवदुर्गा के नौ स्वरूप द्वितीय दिवस
ब्रह्मचारिणी दिवस,
वृषे उमा प्रकर्तव्या पद्योपरि व्यवस्थिता ।
योग पट्टोत्तरा संग मूग सिह परिष्कृता ।। ध्यान-धारण-संतान-निरुद्ध-नियमे स्थिता । कमण्डल ससूत्राक्ष वरदोन्नत पाणिनी ।।
ग्रह माला विराजन्ती जयाबैः परिवारिता ।
पद्मकुण्डल बात्री च शिवार्चनरता सदा ।।
वृष पर पद्म, उसके ऊपर अवस्थित उमामूर्ति। मृगछाला का उत्तरीय, मृग और सिंह से परिवेष्टित ध्यान और धारणा संन्तति द्वारा नियमित संयमकारिणी, कमण्डल, अक्षमाला और वरदहस्ता, गणों से सुशोभित, जया आदिं सखी वृन्दों से घिरी, पद्म-कुण्डल धारिणी तथा सदाशिव की पूजा में निमग्न देवी ब्रह्मचारिणी है।
मानव जीवन में निःस्पृह भाव की सृष्टि ही ब्रह्मचारिणी की उपासना है, यह आत्मबोध की चेतना से सम्पन्न है। शक्ति के इस स्वरूप को प्रेम और दिव्य चेतना के नाम से अभिज्ञात किया जाता है। मानव जीवन में आत्मसुख और आत्मतृप्ति के लिए इन्द्रिय विग्रह आवश्यक है। मानव दिव्य लोक का यात्री तभी बन सकता है जब वह इन्द्रिय विग्रह के व्रत का पालन करता हो, शक्ति के इस रूप की उपासना से ऐसी भावना की सृष्टि होती है, जिससे मानव कालजयी बन सकता है, तपस्या है, इससे शक्ति की अलौकिक अभिधा की सृष्टि होती है।
अतः यह कहा जा सकता है, कि ब्रह्मचारिणी की उपासना से मानव उत्तम गुणों का पोषक बनता है। संसार में सभी दृष्टियों से सफल होने के लिए ब्रह्मचारिणी की उपासना आवश्यक है। संसार के ताप में जले हुए प्राणी को जब एक बार संयम और पवित्रता के मधुर स्पर्श का अनुभव होता है, तब संसार के प्रति वितृष्णा होती है। आनन्द लोक के परमसुख की अनुभूति से मानव का सम्बन्ध इनकी कृपा से संभव है, देवी, किशोरी, कन्या तथा तपस्विनी के वेश में चतुर्वर्गफल प्रदाने करती हैं।
भगवती दुर्गा के बिम्बात्मक दर्शन तथा आरोग्यता प्राप्त करने हेतु
नवरात्रि के दूसरे दिन 'ब्रह्मचारिणी' का स्वरूप का पूजन होता है। भगवती आदिशक्ति के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की साधना करने से साधक के घर में आरोग्यता स्थापित होती है। यदि घर में कोई सदस्य निरन्तर रोगग्रस्त बना हुआ है या स्वास्थ्य ठीक होने पर भी स्वास्थ्य का अनुभव नहीं कर पाता, तो उसके लिये संकल्प कर परिवार का कोई सदस्य इस प्रयोग को सम्पन्न करे, तो वह अवश्य लाभ अनुभव करता है।
साधना विधानः लाल रंग के वस्त्र के ऊपर पीले रंग के चावलों की ढेरी बनाकर उस पर 'हरी हकीक माला' स्थापित कर ब्रह्मचारिणी का ध्यान करें-
दथाना करपद्माभ्यामक्षमालां कमण्डलुम् । देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा ।।ध्यान के पश्चात् माला का संक्षिप्त पूजन कर दूध से बना हुआ भोग अर्पित करें तथा उसी माला से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप करें -
मंत्र
।। ॐ ब्रं ब्रह्मचारिण्यै नमः ।।
प्रयोग समाप्ति के बाद देवी की आरती कर प्रसाद का वितरण करें।
0 टिप्पणियाँ