क्या कहेंगे लोग


क्या कहेंगे लोग?
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कभी कभी हम बिना कुछ गलत किए भी बुरा बन जाते है, क्योंकि जैसा लोग चाहते है वैसा हम करते नहीं। बुरा बनाने का यह डर हर किसी के जीवन में एक वास्तविक बकवास रहा है कि लोग क्या कहेंगे। क्या कहेंगे लोग यह मानसिकता एक रोग है। यह रोग जिसको भी होता है, वह व्यक्ति दुबका, सहमा रहने व जी हुजूरी, गुलामी करने के साथ सड़े-गले आदर्शो, रूढ़ियों, परम्पराओं का शिकार हो कर नष्ट हो जाता है।
एक चीज जो हर व्यक्ति अपने जीवन में पाना चाहता है वह है आजादी। खुद होने की आजादी, खुद को अभिव्यक्त करने की आजादी, अपने सपने और जीवन जीने की आजादी।

     मुझे आश्चर्य है कि कैसे हम कुछ शानदार विचारों को बाहर नहीं आने देते हैं और उन्हें इस डर से अपने दिमाग में घुटने देते हैं कि लोग क्या कहेंगे!
यह दुखद है।
    आप जानते हैं कि लोग आपको हर कदम पर या आपके द्वारा किए जाने वाले हर पल का विरोध करेंगे, इसलिए लोगों से डरना बंद करें।
          
             बंधा हुआ दिमाग

       आप क्या कहेंगे लोग इस मानसिकता के बन्धन में जब तक बंधे रहेंगे, तब तक आपका मन यही कहेगा कि, यह मैं ही हूं मेरा बंधा हुआ दिमाग मुझसे कहता रहता है कि अगर आप इस विचार को सामने रखेंगे तो लोग आप पर हंसेंगे।
अपने अवरोधों को दूर करने का एकमात्र तरीका है।
हमें अपने विचारों को बिना किसी भय के व्यक्त करने की स्वतंत्रता देनी चाहिए।
मनुष्य विरोधाभासों के सबसे बड़े जनरेटर हैं हम मनुष्य अद्भुत हैं। हम कुछ सुझाते हैं और फिर इसके विपरीत सलाह देते हैं।
यह बहुत ही एक सच्चा एवं मजबूत मानसिक आवरण है, कि खुद पर हमारा विश्वास अक्सर दूसरों के निर्णयों से घिर जाता है। हमें इस आवरण से बाहर निकलना चाहिए कि सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग।
क्या सच्चाई छिपाना हमारी आदत है ?  हाँ या नां?
क्योंकि सच्चाई छिपाने के लिए किसी को दण्डित नही किया जाता, मगर सच बताने के लिए कई दण्डित होते है ।
किसी ने क्या खूब कहा है, झूठ बोलकर तो मै भी दरिया पार कर जाता,
मगर डुबो दिया मुझे सच बोलने की आदत ने ।
यहाँ तो जो कर रहें है वो बताओ मत और जो नही करना है वो बोलते जाओ ।
फिर जन्म से पिलाई जाने वाली "सदा सच बोलो" की घुट्टी भला किस काम की, यदि समय और मौके पर हम उस सच और ईमानदारी का इस्तेमाल न कर सके ?

मनोविकार से नुकसान

हाँ, इसी प्रकार का मनोविकार हमें नुकसान पहुँचाता है। यह सोच कि लोग क्या कहेंगे हमारी रचनात्मकता को मार देता है।
कुछ तो लोग कहेंगे, उनकी बातों पर ध्यान न दें और जो करना चाहते हैं वो करें! हिंदी में एक कहावत है- कुत्तों के भोंकने से लोग सड़कों पर चलना नहीं छोड़ देते। इसलिए चिंता न करें कि लोग आपके बारे में क्या बात करते हैं। लोगों की परवाह किए बिना चलते रहे। भगवान आपका भला करे।
रूढ़िवादिता को छोड़कर वास्तविक दुनिया के कौशल को आगे बढ़ाएं। जीवन एक खेल है। खेल-आधारित जीवन पद्धति "करके सीखने" को बढ़ावा देती है। व्यावहारिक अनुभव के माध्यम से, आपको वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों की 20% बेहतर समझ प्राप्त होती है। 

खुद को बदले

खुद के बेहतर संस्करण के लिए खुद को बदलने के बारे में, हर सॉफ्टवेयर को एक अपडेट की भी जरूरत होती है। तो क्या आपकी पुरातन मान्यताएं, आदतें हैं, जो अब आपके विकास की सेवा नहीं करती हैं, आपको उन्हें त्यागने और उन चीजों और लोगों की तलाश करने की आवश्यकता है जो आपके विकास का समर्थन करेंगे। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी जानता है कि यह कैसे करना है तो आप क्यों नहीं? आप कृत्रिम बुद्धि से अधिक जटिल और अधिक प्रतिभाशाली हैं। याद रखें, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मानव प्रतिभा का परिणाम है, अन्यथा नहीं!
इंसान घर बदलता है, लिबास बदलता है, रिस्ते बदलता है, दोस्त बदलता है, फिर भी परेशान क्यो रहता है, क्योकि वो खुदको नही बदलता हैं। किसी ने सच ही कहा था :- इंसान उम्र भर यही भूल करता रहा, कि धूल चेहरे पर थी ओर वो आईंना साफ करता रहा.!!

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