जय माँ सिद्धिदात्रि, नवदुर्गा के नौ स्वरूप नवम दिवस सिद्धिदात्रि दिवस

जय माँ सिद्धिदात्रि 

नवदुर्गा के नौ स्वरूप नवम दिवस  सिद्धिदात्रि दिवस

ॐ उद्यदादित्य-रागरंजितां योगमायां मोहस्तनीं।

शिव विरञ्चि केशव-मुकुट सेवित-चरणां।

नित्यां स्थिरां सिद्धिदामरवेष्टितां ।

पूत प्रणव-राजरचित चमत्कृत-विकसित विन्दुः । दिग्वासिनीं प्रपूजितां अभ्यां वरदां विश्व जननीं ।

सूर्य शशांक-स्पंदनानंद-स्फुरण मंडितां । 

शिवमातरं शिवानीच ब्रह्माणी ब्रह्म जननीं। 

वैष्णवीं विष्णु प्रसूति त्रिपुरां त्रिपुरेश्वरीं।

नमामि मातरं सिद्धिदात्रीम् ।

जो प्रायः सूर्य के रक्त-राग से रंजित हैं, योगमाया, महेश्वरी, शिव, ब्रह्मा और विष्णु के मुकुट द्वारा सेवित चरणों वाली, चांद और सूरज के कम्पजनित आनन्द के स्फुरण से स्फुरित हैं। जी नित्य, सिद्ध, अमरों द्वारा परिवेष्टित हैं, जो पवित्र प्रणव के सुर की मूच्र्छना से बिन्दु को विकसित करती हैं, दिगम्बरा पूजित होकर अभय और बरवान देने वाली विश्व जननी शिव की माता, शिव की पत्नी, ब्रह्म शक्ति, ब्रह्म जननी, विष्णु शक्ति, विष्णु जननी, त्रिपुरा, त्रिपुरेश्वरी है। देवी सिद्धिदात्री माता को प्रणाम करता हूं।

यह सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति करने वाली देवी हैं। साधकों की यही चरम और परम गति है। महागौरी ही सिद्धिदात्री है। 'साधक इनकी आराधना कर दिव्य लोक की शक्तियां प्राप्त करते हैं। इस प्रकार नवदुर्गा की उपासना की परम्परा भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। वैदिक युग से अद्य पर्यन्त इनकी उपासना के अनेक रूप मिलते हैं, भारत से बाहर के देशों में भी नवदुर्गा की पूजा होती है।

साधना विधान: सफेद रंग का वस्त्र बिछाकर उस पर "सिद्धिदायिनी दुर्गा यंत्र' स्थापित करें। दुर्गा का ध्यान करें -

सिद्धि गन्धर्व यक्षायैः असुरैस्मरैरपि । 

साध्यमाना सदाभ्यात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ।।

यंत्र का पूजन कर, नैवेद्य अर्पित कर 'सर्व सिद्धि माला' से 31 माला मंत्र जप करें-

मंत्र: ॥ ॐ शं सिद्धि प्रदाये शं ॐ ॥

प्रयोग समाप्ति पर आरती करें।

साधक को तो इन सभी अद्वितीय प्रयोगों को नवरात्रि के अवसर पर अवश्य सम्पन्न करना चाहिये। प्रत्येक प्रयोग अपने आपमें साधक के जीवन को परिवर्तित करने वाला प्रयोग है। साधक चाहे तो प्रत्येक प्रयोग अथवा अपनी आवश्यकतानुसार किसी भी प्रयोग को सम्पन्न कर सकता है। इतना अवश्य ध्यान रखें, कि यंत्र का स्थापन आप नवरात्रि के निश्चित दिवस पर ही करें तथा नित्त्य दैनिक पूजन कर निर्धारित विवस पर साधना सम्पन्न करें तथा नवें दिन आरती कर पूर्णाहुति करें तो अत्यधिक फलप्रद होगा ।

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