राखी मतलब रक्षा सूत्र-रक्षाबंधन


                                             राखी मतलब रक्षा सूत्र
            बहन-भाई का यह पवित्र पर्व सावन अर्थात् जुलाई-अगस्त में मनाया जाता है।
पुराने ज़माने में राखी या रक्षा बंधन एक और रूप में भी मनाया जाता था। सावन के महीने में ऋषि-मुनि गांव और शहरों में घूम-घूम कर लोगों को भाईचारे, शांति का संदेश देते थे। श्रावणी के दिन वह हर गांव में यज्ञ करते थे और लोगों को गुरुमंत्र देते थे। इस दिन भक्त लोग यह शपथ लेते हैं कि वह सारी उम्र सच्चाई और प्रेम के मार्ग पर चलेंगे। इस शपथ को याद दिलाने के लिए ऋषि लोग भक्तों के दाएं हाथ में राखी और गले में जनेऊ की गांठ बांध देते हैं।

                                   रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ कथाएं
     
           ऐसे तो रक्षाबंधन से बहुत-सी कथाएं जुड़ी हुई हैं लेकिन हम यहां कुछ चर्चित कथाएं दे रहे हैं। इनमें से पहली कथा का धार्मिक महत्व है, जिसे पूजन के साथ कहा जाता है। एक बार युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा- 'हे अच्युत! मुझे रक्षा बंधन की वह कथा सुनाइए जिससे मनुष्यों की प्रेतबाधा तथा दुख दूर होता है।'

भगवान कृष्ण ने कहा- हे पांडव श्रेष्ठ! एक बार दैत्यों तथा सुरों में युद्ध छिड़ गया और यह युद्ध लगातार बारह वर्षों तक चलता रहा। असुरों ने देवताओं को पराजित करके उनके प्रतिनिधि इंद्र को भी पराजित कर दिया। ऐसी दशा में देवताओं सहित इंद्र अमरावती चले गए। उधर विजेता दैत्यराज ने तीनों लोकों को अपने वश में कर लिया। उसने राजपद से घोषित कर दिया कि इंद्रदेव सभा में न आएं तथा देवता व मनुष्य यज्ञ-कर्म न करें। सभी लोग मेरी पूजा करें। दैत्यराज की इस आज्ञा से यज्ञ-वेद, पठन-पाठन तथा उत्सव आदि समाप्त हो गए। धर्म के नाश से देवताओं का बल घटने लगा। यह देख इंद्र अपने गुरु वृहस्पति के पास गए तथा उनके चरणों में गिरकर निवेदन करने लगे- गुरुवर! ऐसी दशा में परिस्थितियां कहती हैं कि मुझे यहीं प्राण देने होंगे। न तो मैं भाग ही सकता हूं और न ही युद्धभूमि में टिक सकता हूं। कोई उपाय बताइए। वृहस्पति ने इंद्र की वेदना सुनकर उसे रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण पूर्णिमा को प्रातःकाल निम्न मंत्र से रक्षा विधान संपन्न किया गया।

'येन बद्धो बलिर्राजा दानवेन्द्रो महाबलः।

तेन त्वामभिवध्नामि रक्षे मा चल मा चलः।'

इंद्राणी ने श्रावणी पूर्णिमा के पावन अवसर पर द्विजों से स्वस्तिवाचन करवा कर रक्षा का तंतु लिया और इंद्र की दाहिनी कलाई में बांधकर युद्धभूमि में लड़ने के लिए भेज दिया। 'रक्षा बंधन' के प्रभाव से दैत्य भाग खड़े हुए और इंद्र की विजय हुई। राखी बांधने की प्रथा का सूत्रपात यहीं से होता है। इसी प्रथा पर आज भी भारत में विश्वास किया जाता है। माना जाता है कि अगर श्रावणी पूर्णिमा के दिन किसी प्रिय के हाथ पर राखी बांधी जाती है तो वह सारे वर्ष सुरक्षित और स्वस्थ रहता है।

          महाभारत काल में शिशुपाल का वध करते समय भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लग गई, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी के पल्लू को फाड़कर भगवान श्रीकृष्ण की कलाई में बांध दिया। ये घटना श्रावण मास की पूर्णिमा को हुई थी।
भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध में युधिष्टिर को सेनिको के हाथ में रक्षा सूत्र बाँधने के लिए भी कहा।
अफ़ग़ानी गांधारी के पुत्र और अफ़ग़ानी शकुनि के भांजे दुशासन से श्रीकृष्ण ने रक्षा की।

                                   राजा बली की कथा

             राजा बली बहुत दानी राजा थे और भगवान विष्णु के अनन्य भक्त भी थे।
एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान उनकी परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु वामनावतार लेकर आए और दान में राजा बलि से तीन पग भूमि देने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप लिया। इस पर राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर उन्होंने भगवान से याचना की कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। उधर देवी लक्ष्मी परेशान हो गईं। फिर उन्होंने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंचीं और राजा बलि को राखी बांधी। बलि ने कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं, इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। इस पर बलि ने भगवान विष्णु को माता लक्ष्मी के साथ जाने दिया। जाते समय भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल चार महीने पाताल में ही निवास करेंगे। यह चार महीना चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।

एक बार गुजरात के राजा बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। चित्तौड़ की रानी करमवती ने अपनी रक्षा के लिए हुमायूं को राखी भेजी। हुमायूं पुरानी दुश्मनी भुलाकर कच्चे धागे से बंधा हुआ चित्तौड़ की रक्षा के लिए चला आया। उसने एक बहादुर भाई का कर्तव्य पूरा करते हुए बहादुर शाह को मार भगाया और मुंहबोली बहन करमवती की राखी का पूरा सम्मान किया।

रक्षा-बंधन मनाने के कारण कुछ भी हो, लेकिन आज यह त्योहार बहनों का दिन बन गया है, जो भाइयों के साथ उन की मुहब्बत के पवित्र बंधन को हर साल ताजा करता है। राखी के दिन से काफी पहले बाजारों में तरह-तरह की रंग-बिरंगी सस्ती मंहगी राखियां नजर आने लगती हैं। बहनें, भाइयों के लिए मनपसंद राखियां खरीद कर लाती हैं। त्योहार के दिन सुबह-सवेरे बहनें नहा-धोकर अच्छे-अच्छे कपड़े पहनती हैं। भाई भी साफ सुथरे कपड़े पहन कर चौकी पर बैठ जाते हैं, बहन भाई के माथे पर तिलक लगती है, भाई के हाथ में राखी बांधती है और फिर उसे अपने हाथ से मिठाई खिलाती हैं। भाई थाल में राखी के पैसे डालकर बहन की दुआएं लेते हैं। शादीशुदा बहन भी अपने बाल-बच्चों के साथ राखी के दिन भाइयों के घर पहुंच जाती है। डाक से राखी भेजने का चलन भी चल पड़ा है। बच्चे, सभी इस अवसर पर खुशियां मनाते हैं, मिठाई खाते हैं और दावतें उड़ाते हैं। जिनके सगे भाई-बहन नहीं होते, वह मुंह बोले भाइयों को राखी बांध कर इस कमी को पूरा करती है।

इसी दिन ब्राह्मण लोग श्रावणी मनाते हैं। बच्चों के आठ साल पूरा होने पर उस दिन जनेऊ पहनाने की रस्म अदा की जाती है। बच्चों को वेदों की शिक्षा देने के लिए इसी दिन गुरुकुल भेजा जाता था। बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु केरल, आंध्रप्रदेश और गुजरात इत्यादि में श्रावणी अधिक मनाई जाती है। इस तरह भारत में एक दिन दो पर्व मनाए जाते हैं।

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