राष्ट्र का प्रतीक तिरंगा व स्वतंत्रता के जन्म का इतिहास

राष्ट्र का प्रतीक तिरंगा व स्वतंत्रता के जन्म का इतिहास 

जब तक हम किसी वस्तु की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भलीभाँति नहीं समझते तब तक उस वस्तु की समग्रता का बोध नहीं हो पाता। किसी वस्तु विशेष के सम्बन्ध में हमारा प्रत्यक्ष ज्ञान तो देश और काल द्वारा सीमित होता है किन्तु इतिहास द्वारा ही उस वस्तु की व्यापकता को हम हृदयंगम कर पाते हैं। इतिहास का आश्रय अगर हम न लें तो हमारा ज्ञान केवल वर्तमान तक ही सीमित एवं अधूरा रह जायगा, किन्तु इतिहास का दीपक लेकर हम अन्धकारपूर्ण अतीत का भी दर्शन कर सकते हैं। हमारे ज्ञान में भी संपूर्णता की संभावना तभी हो सकती है जब हम वर्तमान और अतीत को मिला कर देखें और भविष्य पर भी अपनी दृष्टि रखें।

स्वतंत्र भारत का प्रतीक हमारा राष्ट्र ध्वज-तिरंगा

किसी भी राष्ट्र का ध्वज उस देश की शान और विजय का सच्चा प्रतीक होता है। भारतं ने भी अपनी स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् एक नए झंडे को अपना प्रतीक बनाया। इसमें रक्त, श्वेत और हरे, तीन रंग हैं तथा श्वेत भाग पर एक नीला चक्र है। २२ जुलाई, सन् ४७ को पंडित जवाहरलाल नेहरू
ने जोरदार हर्प-ध्वनि के बीच कडे का प्रस्ताव रक्ता। पंडित जवाहरलाव ने-जो वस्तुतः एक आदर्शवादी, कवि और सौंदर्य प्रमी हैं और जिन्हें परिस्थिति ने यथार्थवादी बनने के लिये विवश कर दिया है-कहा- "हमने एक ऐसा ध्वज पाने का प्रयत्न किया, जो देखने में सुंदर हो, क्योंकि राष्ट्र के प्रतीक को सुंदर होना ही चाहिए। हमने यह भी सोचा कि यह ध्वज इस प्रकार का होना चाहिए, जिससे देश की परंपरा और आत्मा का प्रतिनिधित्व हो सके-उस मित्र परम्परा का, जिसका विकास सहस्रों वर्षों से हमारे बीच हो रहा है। अतएव हमने इस ध्वज को राष्ट्रीय झंडे के रूप में चुना।"

भारत का तिरंगा झंडा वास्तव में अत्यंत सुंदर है। इसकी सबसे बड़ी सुदरता इस तथ्य में है कि इसने भारतीय अनता का गौरव-पूर्ण नेतृत्व किया। यह तिरंगा झंडा कांग्रेस का प्रिय झंडा है। इसके नीचे जमा होकर हमने संघर्ष किया, कष्ट सहे, और अंत में गौरवपूर्ण विजय प्राप्त करने में सफल हुए। जेलों के अंदर और बाहर हमने इसकी पूजा की। राष्ट्रीय आंदोलनों के समय इसी ध्वज के बल पर छोटे-छोटे बच्चों ने बड़े-बड़े ब्रिटिश फ़ौजी सैनिकों का मुकाबला किया। सहस्रों नर और नारियों ने युवकों और वृद्धों ने, अमीरों और गरीबों ने इसके पीछे अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया | इस समय यह विद्रोह का झंडा था, और अब हमारी विजय का प्रतीक है। झंडे के रंगों को नहीं बदला गया, क्योंकि प्रत्येक स्वतंत्रता- प्रिय व्यक्ति के लिये वे रंग पुनीत है।

इस सौंदर्य पूर्ण तथा विजयी झंडे को महात्मा गांधी ने बनाया था। महात्माजी का प्रिय चरखा था--जो सत्य और अहिंसा का प्रतीक है, तथा महात्मा गांधी का भी प्रतीक था; उन महात्मा गांधी का, जिन्होंने 40 करोड़ जनता को अंधकार से निकालकर, प्रकाश में लाकर खड़ा कर दिया, तथा उसके कष्टों को दूर किया । वह चरखा अब भी स्वतंत्र भारत के ध्वज पर एक परिवर्तित रूप में विद्यमान है।
 
      इस प्रतीक के सिवा भारतीय झंडे का चक्र अशोक का धर्म चक्र भी है। इस चक्र से हमें सम्राट अशोक का ध्यान आता है जिन्होंने, अहिंसा को ही अपने जीवन का धर्म बनाया। अशोक की राजधानी सारनाथ में यह चक्र शाश्वत इस धर्म के प्रतीक के रूप में स्थित है। इस चक्र से यह ऐतिहासिक तथ्य प्रकट होता है कि महात्मा गांधी के भारतवर्ष ने अशोक के गौरवपूर्ण भारत का स्थान प्राप्त कर लिया है। अशोक से गांधी तक का इतिहास - एक महान् विजेता, जिसने भारतवर्ष पर न्याय और सत्य के आधार पर राज्य किया, और दूसरा महान मुक्तिदाता, जिसने देश को विदेशी सत्ता से छुड़ाया-सत्य और अहिंसा के बल से ही; 2300 वर्ष का लंबा इतिहास, विदेशी आक्रमण और विजयअपमान और कष्ट-महान् बहादुरी के संघर्ष और दाग
और अंत में भारत को पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति-सभी इतिहास इसमें निहित है।

अशोक का यह चक्र भारत की आध्यात्मिकता का सबसे बड़ा प्रतीक है। यह वह नियम-चक्र था, जिसका उपदेश भगवान् बुद्ध ने दिया, और अशोक ने उसका पालन और प्रसार किया - यह उस नैतिक व्यवस्था का प्रतीक है, जिसके लिये भारत और उसकी संस्कृति को सदैव गौरव रहा है, और है।

पंडित जवाहरलाल नेहरू के उत्तेजना पूर्ण शब्दों में -"यह झंडा साम्राज्यवाद का नहीं है, साम्राज्य का नहीं है, किसी के ऊपर शासन करने का नहीं है, अपितु यह स्वतंत्रता का झंडा है, न केवल हमारे लिये, बल्कि उन सभी के लिये स्वतंत्रता का प्रतीक है, जो इसे देखेंगे। जहाँ भी यह जायेगा, वहाँ के लोगों के लिये स्वतंत्रता का संदेश बनेगा, मैत्री और सहयोगिता का संदेश देगा, यह आश्वासन देगा कि भारत विश्व के प्रत्येक देश के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रक्खेगा, और पराधीन देशों को स्वतंत्रता प्राप्त करने में सहायता करेगा "

स्वतंत्रता का जन्म
15 अगस्त, सन् '1947 प्रथम स्वतन्त्रता दिवस

स्वप्न जैसे सत्य हो गया हो, वैसा ही यह एक दृश्य था, जब 14-15 अगस्त, सन् 1947 की मध्यरात्रि को भारत की विधान परिषद् ने भारत के शासन की पूर्ण सत्ता ग्रहण की कांग्रेन के उन नेताओं को, जो अब तक विद्रोही समझे जाते थे, और विदेशी सरकार की जेलें जिनका घर बन गई थी, सम्मान और गौरव के साथ भारत का शासन-भार सँभालने के लिये बुलाया गया। 
     वस्तुतः यह एक बहुत अधिक महत्व पूर्ण अवसर था, न केवल भारतवर्ष के लिये प्रत्युत्त समस्त एशिया तथा विश्व के लिये भी; क्योंकि उस ऐतिहासिक क्षण एक नए राष्ट्र संसार के एक स्वतन्त्र और संसार में एक महत्तम राष्ट्र का जन्म हुआ। जिस समय मध्यरात्रि में भारत परतंत्रता की निद्रा से जग रहा था, और पूर्व में एक नए नक्षत्र का उदय हो रहा था, उस समय समस्त संसार निद्रा-मग्न था; किंतु उसने इस घटना के महत्त्व को समझा। संसार के सभी स्वतंत्र राष्ट्रों की सरकारों तथा राष्ट्रपतियों ने और संपूर्ण विश्व के कोने-कोने से अनेकों जातियों के लोगों ने स्वतंत्र भारत की सरकार के प्रमुख पंडित जवाहरलाल नेहरू के पास वधाइयाँ और शुभ कामनाएँ भेजीं। 
     स्वतंत्रता के इस प्रभात से भारत में एक नया और गौरवपूर्ण युग प्रारंभ हुआ। लोगों के हृदयों में उल्लास और सत्साह की बाड़ सी आ गई, और चारों ओर स्वतंत्रता का त्योहार मनाया जाने लगा। देश भर में सतंत्रता के प्रदर्शन और जय हिंद के नारों से आकाश गूँज उठा। लोगों ने अपने घरों को सजाया, और दीपावली मनाई - ऐसी, जैसी भारतीय इतिहास में पहले कभी नहीं हुई थी। प्रत्येक व्यक्ति यही कह रहा था कि भारत आजाद हो गया - विदेशी बंधन से आज वह स्वतंत्र हो गया। आज भारत की जनता, दीर्घकाज्ञीन पराधीनता और लगातार संघर्ष के पश्चात् पुनः एक बार अपने पैरों पर खड़ी हो सकी है। वह आज जाग्रत् है, महान् है, स्वतंत्र है, गर्वित है, और आत्मनिर्भर है। सभी वर्गों ने-छोटे, बड़े-बूढ़े और जवानों, किसानों तथा मजदूरों, सभी ने एक साथ कंधे से कंधा मिलाकर, राष्ट्रीय तिरंगे झडे को ऊँचा उठाकर जुलूसों में भाग लिया। यह वह तिरंगा झंडा था, जिसके नीचे जमा होकर राष्ट्र ने अनेकों गौरव-पूर्ण लड़ाइयाँ लड़ीं, विजय पाई, और अंत में इसी झंडे को हाथ में लेकर देश ने स्वतंत्रता प्राप्त की वास्तव में
स्वतंत्रता का सबसे बड़ा महत्त्वपूर्ण चिह्न यह तिरंगा झंडा था, जो गौरव के साथ सभी जगह लहरा रहा था। यह राष्ट्रीय ध्वज उन सभी ऐतिहासिक स्थानों पर शान के साथ लहरा रहा था, जो पिछली दो शताब्दियों से विदेशी साम्राज्यवाद के चिह्न रहे हैं। यह राष्ट्रीय ध्वज बड़े उत्सव, उत्साह और उल्लास के साथ नई दिल्ली के सरकारी भवन पर, वाइसराय के निवास स्थान पर, ऐतिहासिक लाल किले पर-जो आजाद हिंद फ़ौज के सैनिकों के मुक़दमे के बाद से और भी अधिक महत्व पूर्ण हो गया है, झाँसी के किले पर-जहाँ वीर रानी लक्ष्मीबाई ने सन् 1857 में विद्रोह के झंडे को ऊँचा किया था, अहमद नगर-किले पर - जहाँ राष्ट्र के महान् नेतागण लगभग तीन वर्ष तक ब्रिटिश सरकार के बंदी रहे, और सभी अन्य महत्त्वपूर्ण स्थानों तथा भवनों पर लहरा रहा था। प्रत्येक मकान और झोपड़ी, प्रत्येक इमारत और भवन, प्रत्येक गाड़ी और सवारी, प्रत्येक दूकान और सड़क सुंदर राष्ट्रीय ध्वज से सुसज्जित थी। और राष्ट्र के प्रत्येक नर-नारी ने इस झंडे के सम्मुख उस दिन गौरव, आदर और श्रद्धा तथा प्यार से अपना मस्तक झुकाया वस्तुतः यह ध्वज इस सम्मान का पात्र भी है। 

निस्संदेह हम भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रसन्नता से अत्यंत अधिक प्रभावित है, और हम प्रतिवर्ष 15 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाकर अपनी प्रसन्नता का प्रदर्शन एक शाहाना तरीक़े करते है। किंतु उत्सव, उत्साह और उल्लास के इन प्रदर्शनों के सिवा भी हम भारतीयों के लिये 14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को होनेवाली इस घटना का एक विशेष महत्त्व है। इसका महत्व इतना अधिक है कि कदाचित हम उसे उस समय तक पूर्णतया न समझ सकगे, जब तक भारत की पिछली दो शताब्दियों का इतिहास हमारे सम्मुख न होगा - यह प्राचीन देश कैसे एक विदेशी आधिपत्य में आया, कैसे इसफा शोषण हुआ, और अंत में किस प्रकार कांग्रेस ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी, और उसमें विजय प्राप्त की। इस वीरता पूर्ण राष्ट्रीय आंदोलन का ऐतिहासिक ज्ञान स्वतंत्रता का महत्व जानने के लिये आवश्यक है।

भारतवर्ष कैसे एक विदेशी सत्ता का आर्थिक और राज नीतिक शोपण-क्षेत्र बन गया ? कैसे विदेशी राज्य इस देश पर लाद दिया गया ? कैसे और कब शोषित और पीड़ित भारतीय जनता की विस्तृत चेतना जाग्रत हुई, और साम्राज्यवादी आधिपत्य से उसने मुक्त होने का प्रयत्न किया ? कैसे और किसके नेतृत्व में भारतवर्ष की अपार जनता ने विद्रोह का झडा ऊँचा किया, और किस प्रकार उसने स्वतंत्रता की यह लड़ाई लड़ी, तथा इसके लिये क्या-क्या कष्ट सहे ? और अंततः भारतीय पराधीनता की इन हथकड़ियों को तोड़ने में किस प्रकार समर्थ हुई, और किस प्रकार एक पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र का उद्भव हुआ ? आवश्यक है कि इन महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का वास्तविक और तथ्य-पूर्ण विश्लेषण किया जाय।
       इस प्रकार का विश्लेषण किए जाने पर ही आज का नवयुवक सोद्देश्य और विस्तृत रूप से इसे समझ सकने में समर्थ हो सकेगा। तब भविष्य की पीढ़ियाँ इस स्वतंत्रता के अपूर्व महत्त्व को जान सकेंगी, और बड़ी कठिनाइयों के पश्चात् प्राप्त की हुई इस स्वतंत्रता की रक्षा करना अपना पुनीव कर्तव्य समझेंगी, तथा इस बहुमूल्य राष्ट्रीय देन के लिये सर्वस्व त्याग करने के लिये तैयार हो सकगी।

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