(1) हर्ष-हर्ष है नया वर्ष है, लक्ष्य नये संघर्ष नये। छोड़ पुरानी बातों को अब, स्वप्न सजाए नये-नये।। (01) जात धर्म से ऊपर उठ कर हम ना उलझे मतभेदों में। मानवता यह धर्…
Read more »◆ देवहरण घनाक्षरी ◆ (शिल्प~8,8,8,9/ अंत में तीन लघु) भूख से बिलखे मन, चिथड़ों से ढका तन, रोटी मिले मिटे भूख, तन ढके कर जतन। खाल…
Read more »चुपके-चुपके आ कर बेटी माँ के कानों में। कुछ भूली बिसरी यादें साझा कर जाती है।। सास ननद के ताने सुनती चुप रह जाती है। गम सारे हँसते हँसते वह स…
Read more »मैं झरने का पानी ------------------------ सबके मन की पीर लिए मैं निर्झर मैं गाता हूँ मैं बहते ही जाता हूं अविराम गति से पथ पर मैं निर्झर झरने का पा…
Read more »तिरस्कार से कुंठित मन है , सोचे दुर्बल प्राण विवश है। घिरा घन तिमिर हृदय में , भावों का आवेश प्रबल है।। …
Read more »इच्छाएँ जिनका आदि न अंत ------------------- उसने सोचा अभी मेरे खेलने के दिन है खूब खेला अभी पढ़ने के दिन है खूब पढ़ा पढ़ लिखकर नोकरी लगी शादी हुई पत्नी आई बच्चे ह…
Read more »कभी हँसाती, कभी रुलाती कभी रूठती, कभी मनाती हर पल लेती इम्तिहान मत होना तुम परेशान सुख दुख संग सहेली जीवन एक पहेली। …
Read more »तुमको होना महल अटारी ---------------------- तुमको होना महल अटारी गुड़िया प्यारी सूट सफारी। दुनियाँ से क्या तुमको मतलब भाड़ में जाय दुनियादारी।। भरी दुपहरी फसलें सींचे। फ…
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