मैं झरने का पानी


मैं झरने का पानी
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सबके मन की पीर लिए
मैं निर्झर मैं गाता हूँ
मैं बहते ही जाता हूं
अविराम गति से पथ पर
मैं निर्झर झरने का पानी
बस इतनी सी मेरी कहानी
जिसमें अग-जग सारा मोहित
कल-कल निनाद सुनाता
अटल निरंतर प्रति पल
नित रूप बदले जग सारा 
वह गीत अलौकिक मैं गाता
अपने मन को फैलाकर
संदेश अनोखा देने
चट्टानों के तोड़ कड़े पथ
आगे बढ़ते ही जाना
कभी न ठहरे एक जगह पर।

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1 टिप्पणियाँ

Sudha Devrani ने कहा…
झरने के पानी सा जीवन में आगे बढ़ने की सीख देती बेहतरीन प्रस्तुति
वाह!!!