नागपंचमी अर्थात नागदेवता के पूजन का पर्व

'नागपंचमी' अर्थात् नागदेवता के पूजन का दिवस... नागपंचमी के दिन तो सभी लोग नागदेवता की पूजा करते हैं। श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। यह नागों की पूजा का पर्व है। मनुष्यों और नागों का संबंध पौराणिक कथाओं में झलकता रहा है। शेषनाग के सहस्र फनों पर पृथ्वी टिकी है, भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषशय्या पर सोते हैं, शिवजी के गले में सर्पों के हार हैं, कृष्ण जन्म पर नाग की सहायता से ही वसुदेवजी ने यमुना पार की थी। जनमेजय ने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने हेतु सर्पों का नाश करनेवाला जो सर्पयज्ञ आरम्भ किया था, वह आस्तीक मुनि के कहने पर इसी पंचमी के दिन बंद किया था। यहाँ तक कि समुद्र-मंथन के समय देवताओं की भी मदद वासुकि नाग ने की थी। अतः नाग देवता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का दिन है नागपंचमी।


श्रावण मास में ही क्यों मनाते हैं नागपंचमी


वर्षा ऋतु में वर्षा का जल धीरे-धीरे धरती में समाकर साँपों के बिलों में भर जाता है। अतः श्रावण मास के काल में साँप सुरक्षित स्थान की खोज में बाहर निकलते हैं। सम्भवतः उस समय उनकी रक्षा करने हेतु तथा उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु एवं सर्पभय व सर्पविष से मुक्ति के लिए हमारी भारतीय संस्कृति में इस दिन नागपूजन, उपवास आदि की परम्परा रही है।


सर्प हैं खेतों के 'क्षेत्रपाल'


भारत देश कृषिप्रधान देश है। साँप खेतों का रक्षण करते हैं, इसलिए उसे 'क्षेत्रपाल' कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल का नुकसान करनेवाले तत्त्व हैं, उनका नाश करके साँप हमारे खेतों को हराभरा रखते हैं। इस तरह साँप मानव-जाति की पोषण-व्यवस्था का रक्षण करते हैं। ऐसे रक्षक की हम नागपंचमी को पूजा करते हैं।


इसके अलावा खेत में हल चलाते वक्त कभी-कभार नाग अथवा नागिन हल के नीचे आ जायें तो वे बदला लिये बिना नहीं रहते, ऐसी परंपरागत कथा-वार्ता सभी सुनते आये हैं। इसलिए साँप के वैर से बचने के लिए वर्ष में एक दिन उनकी पूजा करने का विधान किया गया । वही दिन नागपंचमी कहलाता है।


नागपंचमी के सम्बंध में कई कथाएँ प्रचलित हैं


किसी गाँव का एक किसान जब अपना खेत जोत रहा था तब उसके हल में सर्पिणी की पूँछ आ गयी। सर्पिणी तो भाग गयी लेकिन उसके तीन बच्चे मर गये। उस सर्पिणी ने बदला लेने के लिए रात्रि में किसान के तीन बच्चों को डॅस लिया।

यह सुनकर पड़ोस के गाँव में ब्याही हुई किसान की बड़ी कन्या रोती-बिलखती पिता के घर आयी। उस रात्रि में भी सर्पिणी किसान के बच्चों को हँसने के लिए आयी किंतु अपने भाई-बहनों के शोक में व्याकुल किसान की बड़ी पुत्री को नींद नहीं आ रही थी, अतः उसने सर्पिणी को देख लिया। पहले तो वह घबरा गयी लेकिन बाद में सर्पिणी के लिए दूध की कटोरी लेकर आयी और पिता के अपराध के लिए क्षमा प्रार्थना करने लगी। लड़की द्वारा इस प्रकार स्वागत करने पर सर्पिणी का क्रोध प्रेम में बदल गया और उसने अपने द्वारा डॅसे गये बालकों का जहर वापस खींच लिया।

तबसे नागपंचमी के दिन नाग के पूजन की परंपरा चल पड़ी - ऐसा कहा जाता है।


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