समाज की विकृतियां
लड़कियों को हुआ है क्या आज
देखो उनके बड़े निराले काज
समाज की विकृतियां
कभी इस पाले में
तो कभी उस पाले में गई
लेकिन कभी कम नहीं हुई।
कभी पुरूष वर्ग ने थामा इसका हाथ
तो कभी महिला वर्ग ने थामा इसका हाथ
कभी जातीयता के नाम पर
तो कभी लिंग के नाम पर
समाज की विकृतियां
फलती फूलती रही।
कल समाज चुप था
आज भी समाज चुप है
जब लड़कियों को जलाई जा रही थी
सती प्रथा के नाम पर
कितने लोग बोले थे
जब बाल विवाह हुआ उनका
तब कितने आगे आये थे
जब विधवा विवाह की बात आई
जब बात आयी नारी शिक्षा की
तब कितने रोड़े अटकाए थे
समाज की विकृतियां
कभी इस पाले में
तो कभी उस पाले में गई
लेकिन कभी कम नहीं हुई।
शर्मसार है मानव जाति
आज कुछ मानव के कुकर्मों से
कौन है इसका दोषी?
कौन है इसका जिम्मेदार?
व्यक्ति? समाज? सरकार? या संस्कार?
इसपर चिंतन करना होगा।
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