जब देखेया मोहे दीखे है वो ही….

 



        जब देखेया मोहे दीखे है वो ही….

     

वो काली-काली अलकें हैं ,

वो खुली-खुली पलकें हैं ।

वो नैना भी तो ढुलके हैं ,

पर देखे मुझे खुलके हैं ।

जब देखेया मोहे दीखे है वो ही ।

जब देखेया मोहे दीखे है वो ही  ।


वो प्यारा-प्यारा मुखड़ा है ,

जैसे चाँद जमीं उतरा है ।

सुमनों सा खिलता है ,

कण-कण मिलता है ।

मोहे मूरत मन मोही …

जब देखेया मोहे दीखे है वो ही ।


देखूँ तुझे चलते तो आए याद पानी है ।

नदियों की रौनकें और सागर रवानी है ।

मन का सुकून भी है तन की मुस्कान है ।

प्यासे इन होठों की तू ही तो जान है ।

वो खिला-खिला अंग भी है ,

वो बरखा रूप रंग भी है ।

वो प्यारी प्यारी सूरत भी ,

वो मोहनी मन मूरत भी ।

मन में बसा लूँ अब तोही।

जब देखेया मोहे दीखे है वोही ।


सूरज में दीखे वोही अग्नि वो लाली है ।

उसके ही दम पर ही तो यहाँ हरियाली है ।

सब तुझे अर्पण है जीवन ये जान ये ।

तन मन मेरा ये और अभिमान ये ।

वो श्याम है सलौना है ,

वो छोटा सा खिलौना है ।

लागे जादू टोना है ,

*अजस्र* मेरा होना है ।

पा लूँगा इक दिन तोही …

जब देखेया मोहे दिखे है वो ही ।

जब देखेया मोहे दीखे है वो ही ।


    ✍🏻✍🏻 *डी कुमार -- अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/ राजस्थान)*

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