मन की व्यथा

आज फीर

एक पंछी उड़ गया 

अपने पुराने नीड़ से

नया जहाँ नया आसमां

नीले आकाश के 

घने आच्छादन में

भन-भन, सन-सन 

बहने वाली हवा के नाद में 

ये कैसा कोसों दूर तक 

फैला हुआ सूनापन।


ओ मेरे सहचर 

तुझसे कैसे कहूँ मैं 

अपने पुराने नीड़ कथा 

उस बरगद वृक्ष से पूछो 

मेरे मन की व्यथा।


उलझ जाता हूँ

शब्द व्यूहों में अर्थ खोजने में

भाव के प्रवाह में बहता जाता हूँ 

अनायास डूबकर देखता हूँ थाह कहाँ?

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