वो डिवोर्स का कागज

वह डिवोर्स का कागज...


देख रही थी अपना

टकटकी लगाए 

प्रश्नभरी आँखों से

जिस पर

'उदासी, दुख, विषाद निराशा' 

के निशान लगे हुए थे।

हठात उन्हें लगा, 

सारे अंतहीन सिलसिले 

एकदम से खत्म होने को आ गए।


खट-खट-खट खटाट-खट ?

मन के द्वार आवाज आई

कौन दरवाजा खटखटा रहा है ?

वह एकदम चुप-सी हो रही हैं। 

उन्हें लगने लगता है 

जैसे इस सवाल के साथ 

जुड़े सारे सरोकार खत्म हो चुके हैं।


वह कागज उसी तरह हाथ में था

वह एकटक उसी तरफ देखती रही 

यकायक झपटी और कागज को फेक दिया 

वही लहरें, 

जो स्नेह स्पर्श-सी सहला रही थीं, 

आज वेगवान आक्रामक 

ज्वार के समान 

दीवारों की चट्टान पर सिर पटकने लगीं।


वह घुटनों के बल फर्श पर झुकी 

और दोनों हाथों में मुंह छिपा लिया । 

कुछ क्षणों बाद 

सहसा प्रवाह का गर्जन टूटा 

और वातावरण में उदासी भर गई एकरस |

 ... अनवरत ।

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