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पहलगाम में आतंकी ,
गुरगों ने कुत्सित काम किया ।
निहत्थे निर्दोषों का क्यों,
उनने कत्ले आम किया ?
आतंक की दुकाने उनकी ,
बम गोलियों के हथियार ।
दहशत का बाजार गर्म कर ,
षडयंत्रों की मारे मार ।
खूबसूरत कश्मीर में वो है ,
बदनामी के दाग बड़े ।
रक्त से रंजीत कर दी धरती,
यहां वहां पर शव है पड़े ।
मानवता की शर्मसारगी ,
अधर्म नाम के वो जल्लाद ।
सजादायगी ऐसी मिलेगी ,
जन्मों-जन्मों करेंगे याद ।
भारत देश के शूरों को ही ,
लेना होगा पूरा हिसाब ।
खूनी खेल जो उन्होंने खेला ,
वैसा ही हो उन्हें जवाब ।
आतंकवाद के दानव को ,
दफन मिट्टी में अब कर दो ।
प्रतिशोध महाएक्शन से लेकर,
नेस्तनाबूद ही अब कर दो ।
राजनीति है सबकी अपनी ,
कोई नहीं हो यहां मतभेद ।
मजबूत इरादों से सबक सिखाएं ,
देवें उन्हें कब्रों में भेज ।
आतंक के इस छदम युद्ध में ,
कोई धर्म बदनाम ना हो ।
धर्म पूछ कर मारने वाले ,
पैदा कभी ना बाद वो हो ।
देश की जो ,आम है जनता ,
आतंक से मन वो डरी हुई ,
*अजस्र* इबारत ऐसी लिख दो ,
कश्मीर हरियाली बने नई।
देश मुकुट कश्मीर जो सुंदर,
आतंक से न हो मनभेद।
धर्म से ऊपर देश धर्म है ,
भारत देश में सब हैं एक ।
✍️✍️ *डी कुमार--अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)*
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