दर्द आंख का तुम क्या जानो?
जिस आँख बहा जीवन भर पानी
किस तरह कह सकेगा
इस विकट पथ की कहानी
सिसकता वह जो खोया है
दर्द आंख का तुम क्या जानो?
जो जीवन भर रोया है।
सहा सब कुछ पर
कहा कुछ नहीं
उसको आंसुओं में सदा
मुस्कान दिखाई देती रही,
दुख ही सुख है
दुख में ही रहने दो मन को
मत छीनों निर्धन के धन को।
दूर रहो तुम दूर रहो
मेरा क्या मैं जीवन भर
रो-रो कर भी जी लूंगा
हृदय शून्य में आशा तारक
जल-जल कर फीर बुझ जाते।
अखिल विश्व में एक तुम्हीं थे
और तुम्हीं तो रूठ गये
नयन अश्रु टपकाकर
कहता हूँ मन को समझकर
आ जाओ अब
कब आये वह?
कहाँ यहाँ वह?
सुना है जीवन का मधुवन।
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