कौन थे सम्राट नौशेरवां?

             

      इतिहास में ईरान के सम्राट नौशेरवां का नाम आज भी चमक रहा है, दमक रहा है। वह मर गया, परन्तु उसकी न्याय-निष्ठा आज भी जीवित है, और युग-युग तक जीवित रहेगी। काल के सघन आवरण भी उसको न धूमिल बना पाए हैं, और न कभी उसे धूमिल बना पाएंगे।

    एक बार बादशाह नौशेरवां अपना शाही महल बना रहा था। महल का नक्शा बनाने वाले कलाकारों एवं कारीगरों ने बादशाह को बताया, कि आपके महल के बाहर उसके बराबर एक हिस्से में एक गरीब जन का झोंपड़ा है, जब तक उसके झोंपड़े को महल के साथ नहीं मिलाया जाएगा, तब तक मकान चौरस नहीं बन पाएगा । महल को सुन्दर एवं भव्य बनाने के लिए इस टूटी-फूटी झोंपड़ी की जगह को इसमें मिला लेना आवश्यक है।

बादशाह ने बुढ़िया को बुलाया और उससे कहा, कि तुम इस झोंपड़ी का मूल्य ले लो, और यह जगह मुझे दे दो ।

बुढ़िया ने कहा "मुझे पैसा नहीं चाहिए मैं वर्षों से नहीं, पीढ़ियों से इस झोंपड़े मैं रह रही हूँ । अतः में इसे बेचना नहीं चाहती। "

    "यदि तुम इसको बेचना नहीं चाहती हो, तो में तुम्हें इससे भी अधिक लम्बा-चौड़ा एवं सुन्दर बना हुआ भवन अन्य स्थान पर दे सकता हूं। तुम वहाँ जाकर आराम से अपना जीवन व्यतीत करो।"

    बुढ़िया भी पूरी जिद्दी थी उसने निर्भयता से कहा- "जहाँपनाह! इस झोपड़ी में मेरी कई पीढ़ियां बीत गई है। इसके साथ हमारी वंश परम्परा का इतिहास जुड़ा हुआ है। इसलिए मैं इस स्थान को छोड़कर अन्यत्र नहीं जा सकती, भले वह स्थान कितना ही सुन्दर क्यों न हो? आपको जितना अपना महल प्रिय है, मुझे भी अपनी यह टूटी-फूटी झोंपड़ी भी उतनी ही प्रिय हैं।"

    दुढ़िया के इन्कार करने पर बादशाह ने कारीगरों से कहा, कि बुढ़िया ने झोंपड़ी देने से इन्कार कर दिया। और मैं जोर-जबरदस्ती किसी के अधिकार की जगह को छीन नहीं सकता। इसलिए अपने पास जितनी और जिस तरह की जगह है उसी में महल बनाकर तैयार कर दो। बादशाह की आज्ञा के अनुरूप महल बनकर खड़ा हो गया। परन्तु बुढ़िया अपनी भाड़ में जब चने आदि भूजती तब उसके हुए से महल की दीवार काली होने लगी। इसके लिए बादशाह ने फिर उसे बुलाकर समझाया, कि तुम अपनी भाङ (भट्टी) जलाना बन्द कर दो, जिससे महल की चांदी सी चमचमाती हुई दीवार काली न पड़े और तुम्हारी भाड़ बन्द करने से तुम को कोई नुकसान भी नहीं होने दूँगा। तुम्हारे खाने-पीने का सब समान शाही रसोईघर से प्रतिदिन समय पर पहुँच जाएगा।

    यह सुनकर बुढ़िया ने तुरन्त उत्तर दिया- क्या में लूली-लंगड़ी एवं अपाहिज हूँ, जो शाही भोजनालय की रोटियों से पेट भरूं। जब तक मेरे शरीर में ताकत है, तब तक में परिश्रम करके ही पेट भरुंगी। स्वतन्त्र रहकर जीने में जो आनन्द है, वह परतन्त्र बनने में नहीं।

    बादशाह निस्तर हो गया। बुढ़िया की भट्टी का धुआ महल की दीवार पर कालिख पोतता ही रहा। यदि बादशाह चाहता, तो झोंपड़े को नष्ट करवा सकता था, उस बुढ़िया को जबरदस्ती निकलवा सकता था। परन्तु यह कार्य न्याय-युक्त नहीं कहा जाता यह घटना न्याय निष्ठा का उज्ज्वल एवं समुज्ज्वल प्रमाण है आज न तो नोशेरवाँ हैं, और न वह बुढ़िया है। काल के कराल चपेटों ने बादशाह के महल को भी बिखेर दिया और बुढ़िया के झोंपड़े को भी नष्ट कर दिया। परन्तु उसकी न्याय-प्रियता को न तो काल अब तक मिटा सका है, और न भविष्य में मिटा सकेगा ।

   राजा नोशेरवाँ ने गरीब बुढ़िया को जो न्याय दिया था, उसने उसकी कीर्ति को दुनिया में अमर बना दिया। कहने का अभिप्राय यह है, कि न्याय निष्ठा, प्रामाणिकता एवं नैतिकता ही राजा का सच्चा आभूषण है।

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