झूठ या सच

झूठ या सच 
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झूठे लगते अब तो प्यारे, सच्चाई में कुछ दम नहीं।
झूठे जीते और सच्चे हारे, सच सुनने की कूबत नहीं।।
     
सच को झूठा साबित करता, झूठ बोलता है ज्यादा।
पूजा अब उसकी होती है, करे जो नित झूठा वादा।।
     
दया धरम बात पुरानी, लाज शरम लगती बेईमानी।
दुखी की विपदा न जानी, सत्ता बल करे मनमानी।।


अभी दबा लो सच को, पर सच मिट सकता नहीं।
इक दिन पोल खुलेगी सच से, झूठ बच सकता नहीं।।

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