बिदाई के पल

विदाई के पल
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घड़ी विदाई की आई
बिटिया चली विदेश
भीगी अँखियाँ बाबुल की
जैसे पावस प्रदेश।

मेहमानों से यूँ मिले
मंद-मंद मुस्काये
हृदय वेदना दिल में छुपाए
भीतर भीतर रोये।
रह-रह के सब याद आये
यादों के अवशेष।
घड़ी विदाई की आई
बिटिया चली विदेश
भीगी अँखियाँ बाबुल की
जैसे पावस प्रदेश।


बिटिया से बोले बाबुल
इस घर को तुम जाना भूल
उस घर काँटे भी मिले तो
समझ लेना उनको फूल।
जब जब याद मेरी आये
पिता समझ ससुर को देख
मन ही मन हो लेना खुश।
घड़ी विदाई की आई
बिटिया चली विदेश
भीगी अँखियाँ बाबुल की
जैसे पावस प्रदेश।

कैलाश मंडलोई 'कदंब'


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