भूलना सीखें, सुखी रहें

 

भूलना सीखें, सुखी रहें

इंसान का जीवन एक सफर है। इस सफर में वह अपने साथ अच्छी बुरी यादें लेकर चलता है। अच्छी यादें उसे उत्साह एवं ऊर्जा देती है और बुरी यादें उसे निराशा एवं थकान देती हैं। अच्छी यादों से मन का बोझ हल्का होता है और बुरी यादें से मन भारी। इंसान के जीवन में अच्छे और बुरे सभी तरह के पढ़ाव आते हैं। हताश एवं निराश व्यक्ति यहीं विलाप करते रुक जाते हैं और उत्साहित लोग खुशी-खुशी मंजिल पर पहुंचते हैं। अब आपको तय करना है कि आप भार लादे सफर करोंगे या हल्केपन की उड़ान भरोगे।

कहावत है कि 'वक्त बड़े से बड़ा घाव भर देता है।' युवावस्था में कोई स्त्री विधवा हो जाती है तो उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। सामाजिक रीति-रिवाज तथा परम्पराएं उसे नारकीय जीवन जीने को मजबूर कर देती हैं। बुढ़ापे में किसी के पुत्र का पुत्र (पोता) मर जाता है, पत्नी मर जाती है, तो भगवान का कहर टूट पड़ता है। हाहाकार मच जाता है, काफी दारुण स्थिति हो जाती है। अकाल, बाढ़, भूकम्प, सुनामी, युद्ध, बम विस्फोट आदि से भी व्यक्ति मौत को प्राप्त करता है, जो क्षति अपूर्णीय होती है। परंतु धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो जाता है। ऐसा क्यों होता है?

इसके पीछे भूलने की कला अथवा चमत्कार छुपा हुआ है। धीरे-धीरे व्यक्ति में सहनशक्ति, धैर्य, साहस का उदय तथा विकास होता है तथा जो घाव अथवा चोट उसे लगी थी. उसका दर्द कम महसूस होने लगता है। फलत: वह व्यक्ति घटना को भुलाना शुरू कर देता है तथा सामान्य क्रियाएं यथा खाना-पीना, बोलना, हंसना, सोना, सोचना, योजनाएं बनाना आदि शुरू कर देता है। पुनर्विवाह भी भूलने की कला का चमत्कार हो है ।

अमेरिका के एक सुप्रसिद्ध डॉक्टर 'मेडीकल टॉक' नामक पत्र में लिखते हैं कि वर्षों के अनुभव के बाद मै इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि दुःख दूर करने के लिए 'भूल जाओ' इससे बढ़कर कोई दवा ही नही है। रोज-रोज जिन्दगी में छोटी-मोटी चिंताओ को लेकर उदास मत रहो, इन्हें भूल जाओ, उन्हे पोसो मत, अपने दिल के अंदर उन्हें पाल कर मत रखो, उन्हें अंदर से निकाल फेको और भूल जाओ, उन्हें भुला दो ।

दूसरों के प्रति तुम्हारे मन में घृणा, द्वेष, ईर्ष्या दुर्भाव आदि के जो घाव हैं, उनमें भीतर ही भीतर मवाद भर रहा है और यह मवाद बढ़ रहा है तथा यह तुम्हारे ही शरीर, मन प्राण में जहर फैला रहा है। क्यों न तुम इन तमाम गलतफहमियों तथा दुर्भावनाओं को अपने दिल एवं दिमाग से निकाल फेंको, मन साफ रखो, उसे झाडू से साफ कर लो, हृदय से बहा डालो और तुम देखोगे कि तुम्हारे भीतर ऐसी पवित्रता, ऐसी सफाई आएगी कि तुम्हारा शरीर और मन पूर्णतः स्वस्थ तथा निर्मल हो जाएगा।

दुःख की चिंता, बीमारी की भयानकता की बाते न करो, न ही सुनो। स्वास्थ्य की, आनन्द की खुशहाली की प्रगति की, मनोरंजन की खेल की, देश-विदेश की बातें करो और सुनो तुम देखोगे कि तुम्हें स्वास्थ्य लाभ, आनन्द लाभ, प्रेम-प्यार, शांति, सफलता, सम्पन्नता प्राप्त हो रही है।

अतः भूलना सीखो। यह शरीर के स्वास्थ्य और मन की शांति का मूल-मंत्र है। अतः कोई दुःख यदि आपको हुआ है तो उसे गया समझो. भुला दो उसे तभी आप सुखी तथा चिंता रहित जो सकोगे। अभावों तथा कष्टों से जूझना सीखो, उनका सामना करो, हल निकालो, विकल्प तलाशो मार्ग अपने आप बन जाएगा। ईश्वरीय विपत्ति समझकर किसी से ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, बैर, क्रोध, दुर्भाव न करो, यही सुखमय जीवन का सार है।

वस्तुतः भूलना सीखो तथा वर्तमान में जीना सीखो। अपने व्यवहार एवं विचार को दूषित न होने दो। भूलना सीखें, सुखी रहे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ