बचपन कितना अच्छा था



मैं नन्हा मुन्ना बच्चा था
बचपन कितना अच्छा था।।


लड़ूं झगड़ू मैं तो सबसे
था दिल में कोई बैर नहीं।
नई-नई फरमाइश मेरी
घरवालों की खैर नहीं।
समझ में थोड़ा कच्चा था
बचपन कितना अच्छा था।।


तेरे-मेरे ऊंच नीच का
भेदभाव न था मन में।
काम क्रोध मद लोभ का
विष भरा नहीं था तन में।
जीवन सीधा सच्चा था
बचपन कितना अच्छा था।।


दिनभर मैं तो खेलूं कुदूँ
जरा नहीं मैं थकता था।
दादा-दादी मुझको टोके
मैं रोके नहीं रुकता था।
मैं तो भालू का बच्चा था
बचपन कितना अच्छा था।।


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