प्रकाश पर्व पर दूर हो अज्ञान का अंधेरा

 



         महापुरुषों के आदर्शों के संस्मरण का अवसर दीपावली
 
     भारत में बारह महीने कोई न कोई त्यौहार किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। हिंदू समाज के चार प्रमुख त्योहार है। यह त्यौहार है रक्षाबंधन, विजयादशमी, दीपावली, और होली। इन सब में दीपावली एक प्रमुख त्योहार है। इसकी परंपरा भी अत्यंत प्राचीन है। प्रायः सभी जाति वर्ग के लोग इसे सम्मान रूप से मनाते हैं। दीपावली शब्द का संधि विच्छेद करने पर इसका अर्थ स्पष्ट हो जाता है। दीपावली अर्थात दीप+अवली। दीप का अर्थ दिया होता है। अवली का अर्थ पंक्ति होता है। इस प्रकार दीवाली का सामूहिक अर्थ हुआ दीपों की पंक्ति। इस त्यौहार में प्रत्येक घर में दीपों की पंक्तियां सजाई जाती है। इस कारण इसका नाम दीपावली पड़ा।
     इस त्यौहार के पीछे भी अनेक कहानियां है। दीवाली के पीछे एक कथा है। पहली बार अयोध्यावासियों ने तब दीवाली मनाई थी, जब रामचंद्र जी, लक्ष्मण, सीता, हनुमान के साथ लंका विजय करके चौदह वर्ष के बाद अपनी राजधानी लौटे थे। अयोध्यावासियों ने घीं के दीप जलाए थे, सारा दिन, सारी रात खुशियां मनाई गई थी। तब से आज तक रावण पर राम की विजय, यानी बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव उसी उल्लास से मनाया जाता है। इसी समय से दीपावली की शुरुआत हुई। यह भी कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने नरकासुर जैसे अत्याचारी का इसी दिन संहार किया था। यह भी कहा जाता है कि वामन का रूप धारण कर इसी दिन विष्णु भगवान ने राजा बली की दानलीला की परीक्षा ली थी। विष्णु भगवान ने उसके अहंकार को मिटाया था। तभी से विष्णु भगवान की स्मृति में यह पर्व मनाया जाने लगा।
     जैन धर्म के अनुसार 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर ने इसी दिन पृथ्वी पर अपने अंतिम ज्योति फैलाई थी और वह मृत्यु को प्राप्त हो गए थे। आर्य समाज के प्रवर्तक और आधुनिक भारतीय समाज के सृष्टा स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु इसी दिन हुई थी। इस प्रकार इन महापुरुषों की स्मृतियों को अमर बनाने के लिए भी यह त्यौहार बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता है।
     वैश्य जाति का यह अत्यंत प्रिय पर्व है। बंगाली लोग इस दिन काली की पूजा करते हैं। यह त्यौहार चाहे किसी कारण से मनाया जाए किंतु है बड़े काम का। इनके अतिरिक्त धर्म अर्थ काम मोक्ष हिंदुओं के धर्म शास्त्र में यह चार पुरुषार्थ माने गए हैं। दीपावली के दिन को (अर्थ) अर्थात धन का पर्व माना जाता है। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। उनके स्वागत के लिए घरों में दीप जलाए जाते हैं।
                पाँच दिनों का ब़ड़ा त्यौहार
     यह त्यौहार 5 दिनों तक चलता रहता है। त्रयोदशी के दिन धनतेरस मनाया जाता है। उस दिन नए-नए बर्तन खरीदना बड़ा शुभ माना जाता है। एक कथा प्रचलित है कि समुद्र मंथन से इसी दिन देवताओं के वैद्य धनवंतरी निकले थे। इस कारण से किस दिन धनवंतरी जयंती भी मनाई जाती है। दूसरे दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी अथवा छोटी दीपावली का उत्सव मनाया जाता है। श्री कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध के कारण यह दिवस नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। अपने-अपने घरों से गंदगी को दूर कर देना एक प्रकार से नरकासुर का वध कर देना ही है।
    तीसरे दिन अमावस्या होती है। दीपावली उत्सव का यह प्रधान दिवस है। रात्रि के समय लक्ष्मी पूजन होता है। उसके पश्चात लोग अपने घरों को दीप मालिकों से सजाते हैं। बच्चे बड़े- बूढ़े फुलझड़ी और पटाखे छोड़ते हैं। सारा वातावरण धूम-धड़ाके से भर जाता है। इस प्रकार अमावस्या की रात रोशनी की रात में बदल जाती है।
    चौथे दिन गोवर्धन पूजा होती है। यह पूजा श्री कृष्ण के गोवर्धन धारण करने की स्मृति में की जाती है। स्त्रियां गोबर से गोवर्धन की प्रतिमा बनाती है। उसी गोबर से गयें और गोपाल भी बनाए जाते हैं। रात्रि को उनकी पूजा होती है। किसान लोग अपने-अपने बछड़ों को अच्छी तरह नाहलाते हैं। और उनके शरीर पर मेहंदी रंग आदि लगाते हैं। इसी दिन अन्नकूट भी मनाया जाता है।
    पांचवें दिन भैयादूज होती है। इसे यमद्वितीया भी कहते हैं। इस दिन बहनें अपने-अपने भाइयों को तिलक लगाकर उनके लिए मंगल कामना करती है। कहा जाता है कि इसी दिन यमुना जी ने अपने भाई यमराज के लिए मंगल कामना की थी। तभी से यह पूजा चली आ रही है।
    दरअसल दीपावली एक बहुत उपयोगी त्योहार है। इसी बहाने टूटे-फूटे घरों की मरम्मत हो जाती है। घरों की पुताई हो जाती है। वर्षा ऋतु में जितने कीट पतंगे उत्पन्न हो जाते हैं सब के सब मिट्टी के दीप पर मंडरा कर नष्ट हो जाते हैं।  
     दीवाली पर लगभग हफ़्तों पहले से काम की व्यस्तताएं आरंभ हो जाती है। घर की सफेदी करानी है। बच्चों के लिए नए कपड़े बनवाने हैं, मित्रों और बंधुओं के घर मिठाइयां भेजनी है। दिवाली क्या आती है, काम की धूम लेकर आती है। साल में एक बार आने वाला त्यौहार, लक्ष्मी के आगमन का त्यौहार, लक्ष्मी जो सुख समृद्धि की देवी है। बड़े-बड़े कहते हैं कि जिसका घर द्वार साफ-सुथरा होता है उसी लक्ष्मी उसी के घर जाना पसंद करती है। लक्ष्मी उसी पर कृपा करती है। आलसी लोग घर साफ नहीं रखते, काम से जी चुराते हैं, ऐसे लोग सफल नहीं होते। यह भी कहते हैं कि जो प्रसन्न चित्त रहता है वही लक्ष्मी को पा सकता है।
               प्रकाश पर्व पर दूर हो अज्ञान का अंधेरा
     कितना अच्छा लगता है जब सारे घरों में एक साथ सैकड़ों हजारों दिए जल उठते हैं। दीवाली की रात, यानी कार्तिक की अमावस की रात। वर्ष भर की सबसे काली रात होती है। लेकिन लोग इसे वर्ष भर की सबसे ज्यादा जगमगाती रात बना देते हैं। दीपक को सूर्या अर्थात प्रकाश का उत्तराधिकारी माना गया है। सूर्यास्त होने के बाद प्रकाश का कार्य न तो पहाड़ करता है न ही अगाध सागर। एक छोटा दीपक हमें प्रकाश देता है। मन के, समाज के अंधेरे को दूर करने का प्रतीक है दीपक। इसीलिए घरों की छतों पर, दीवारों तथा सीढ़ियों पर दीपक जलाए जाते हैं। दीपावली पर्व पर जगमगाते दीपक जल कर गहन अंधकार से लड़ने का संदेश देते हैं। प्रकाश का यह पर्व आत्म प्रकाश का संदेश देता है। जीवन की राह में चलने पर ज्ञान एवं विवेक के प्रकाश की आवश्यकता होती है। दीपावली एकमात्र ऐसा त्यौहार है जो समृद्धि और संस्कृति के बीच सेतु की भूमिका निभाता है। समृद्धि की आराधना संस्कृति के कारण ही की जाती है। इसे पौराणिक युग की गहरी सोच का निष्कर्ष कहना ठीक होगा कि जीवन के विभिन्न अंगों को संस्कृति के माध्यम से जोड़कर एक संतुलन कायम किया गया है।
                समृद्धि व संस्कृति का महापर्व दीपावली
     तात्कालिक, अल्पकालीन या दीर्घकालीन हो सकती है। संस्कृति एक परंपरा के रूप में सतत प्रवाह है। समयानुसार परिवर्तन, संशोधन, संवर्धन उसका गुण है। समृद्धि चार दिनों की चांदनी हो सकती है जबकि संस्कृति का प्रकाश पीढ़ियों, युगों,  सदियों तक चमकता रहता है। आज के दौर में समृद्धि की व्याख्या की आवश्यकता नहीं रह गई है। समृद्धि की गति और साधनों से जन्मी निरंकुशता संस्कृति को नकारने तक का साहस जुटा रही है।
     एक गंभीर प्रश्न है कि क्या समृद्धि संस्कृति को निकल जाएगी? या परंपरागत शक्ति के रूप में स्थापित संस्कार व संस्कृति को कुछ समय के लिए ग्रहण लग जाएगा? या भौतिक समृद्धि की चकाचौंध में संस्कृति का दिया धुंधला कर टीम-टीमाने को मजबूर रहा हैरोशनी के इस महापर्व के अवसर पर समृद्धि के प्रकाश की कामना करें। साथ ही यह प्रार्थना भी करें कि संस्कृति का दिया अपनी पूरी शक्ति के साथ जगमगाता रहे। संस्कृति के प्रकाश में जगमगाती समृद्धि ही इस देश की विशेषता बने यह इसकी शक्ति रहे। दीपावली की खुशियों का त्योहार हमें याद दिलाता है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी राम असंख्य वनचरों  को संगठित कर रावण जैसी आतंकी महाशक्ति को परास्त कर देते हैं। और दीपावली का दीप यह भी बताता है कि कैसे एक नन्हा दीपक ठान ले तो अपने जैसे असंख्य दीपों को जलाता हुआ अमावस्या की रात को दीवाली बना दिया है।
     जब जीवन को संकल्पों की आंच में तपाते हुए निर्माण की प्रक्रिया से गुजारा जाता है तब ही ऐसा संभव होता है। जीवन तो ईश्वर की देन है लेकिन 'जीवन निर्माण' के लिए आवश्यक होता है-आदर्श, प्रेरणा, संकल्प और संस्कारों का साहचर्य। संयोग से यह त्योहार अनेक महापुरुषों के संस्मरण के अवसर भी उपस्थित है जिनके जीवन दीप समाज के अलग-अलग क्षेत्रों का अंधकार मिटा कर सार्थक हुई। इन महापुरुषों की लंबी मालिका है जिनके जीवन दीपों से भारत मां का आंगन जगमगाया है। जयंती या पुण्यतिथि के रूप में इन सब के संस्मरण का अवसर है दीपावली।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ