गीत अधूरे,

दुखियों के भगवान नहीं क्या? 
------------------------------------ 
स्वार्थ की सीलन से
जीवन की फिसलन से 
लुट-लुट कर दिन लाखों के 
अपनी रात सज़ा रक्खी है
पुछ रहे विश्वास हमारे
दुखियों के भगवान नहीं क्या? 
सूखा तन सूखा ही मन 
दो वक्त रोटी को तरसे 
शुष्क पेट में लगी आग है 
इनको जीवनदान चाहिए
झुलस रहे है प्रण हमारे
दुखियों के भगवान नहीं क्या? 
गीत अधूरे, टूटे सपने, 
यही बचें है संग सहारे  
इनकी आँखों में लाखों आंसू
है हर आँसू में चिंगारी  
फटी हुई आँखों से निहारे
दुखियों के भगवान नहीं क्या? 
आओ समझें इनको जाने
इनकी पीड़ा को पहचाने
इनको भी सम्मान चाहिए
इनके भूखे पेट भरे हम
बन जाओ तुम इनके सहारे 
दुखियों के भगवान नहीं क्या? 
कैलाश मण्डलोई "कदम्ब"

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ