पहला क्रांतिकारी व्यक्ति जिसने जूते की ईजाद की थी...(एक प्राचीन कहानी)

पहला क्रांतिकारी व्यक्ति जिसने जूते की ईजाद की थी...(एक प्राचीन कहानी)

एक सम्राट एक दिन सुबह अपने बगीचे में निकला। निकलते ही उसके पैर में कांटा गड़ गया। बहुत पीड़ा उसे हुई। और उसने सारे साम्राज्य में जितने भी विचारशील लोग थे, उन्हें राजधानी आमंत्रित किया। और उन लोगों से कहा, ऐसी कोई आयोजना करो कि मेरे पैर में कांटा न गड़ पाए।

वे विचारशील लोग हजारों की संख्या में महीनों तक विचार करते रहे और अंततः उन्होंने यह निर्णय किया कि सारी पृथ्वी को चमड़े से ढांक दिया जाए, ताकि सम्राट के पैर में कांटा न गड़े। यह खबर पूरे राज्य में फैल गई। किसान घबड़ा उठे। अगर सारी जमीन चमड़े से ढंक दी गई तो अनाज कैसे पैदा होगा? सारे लोग घबड़ा उठे- राजा के पैर में कांटा न गड़े, कहीं इसके पहले सारी मनुष्य जाति की हत्या तो नहीं कर दी जाएगी? क्योंकि सारी जमीन ढंक जाएगी तो जीवन असंभव हो जाएगा।

लाखों लोगों ने राजमहल के द्वार पर प्रार्थना की और राजा को कहा, ऐसा न करें कोई और उपाय खोजें। विद्वान थे, बुलाए गए और उन्होंने कहा, तब दूसरा उपाय यह है कि पृथ्वी से सारी धूल अलग कर दी जाए, कांटे अलग कर दिए जाएं, ताकि आपको कोई तकलीफ न हो।

कांटों की सफाई का आयोजन हुआ। लाखों मजदूर राजधानी के आसपास झाडुएं लेकर रास्तों को, पथों को, खेतों को कांटों से मुक्त करने लगे। धूल के बवंडर उठे, आकाश धूल से भर गया। लाखों लोग सफाई कर रहे थे। एक भी कांटे को पृथ्वी पर बचने नहीं देना था, धूल नहीं बचने देनी थी, ताकि राजा को कोई तकलीफ न हो, उसके कपडे भी खराब न हों, कांटे भी न गड़ें। हजारों लोग बीमार पड़ गए, इतनी धूल उड़ी। कुछ लोग बेहोश हो गए, क्योंकि चौबीस घंटा, अखंड धूल उड़ाने का क्रम चलता था। धूल वापस बैठ जाती थी, इसलिए क्रम बंद भी नहीं किया जा सकता था।

सारी प्रजा में घबड़ाहट फैल गई। लोगों ने राजा से प्रार्थना की यह क्या पागलपन हो रहा है। इतनी धूल उठा दी गई है कि हमारा जीना दूभर हो गया, सांस लेना मुश्किल है। कृपा करके ये धूल के बादल वापस बिठाए जाएं। कोई और रास्ता खोजा जाए।

फिर हजारों मजदूरों को कहा गया कि वे जाकर पानी भरें और सारी पृथ्वी को सीचें। नदी और तालाब सूख गए। लाखों भिश्तियों ने सारी राजधानी को, राजधानी के आसपास की भूमि को पानी से सींचा। कीचड़ मच गई, गरीबों के झोपड़े बह गए। बहुत मुसीबत खड़ी हो गई। फिर राजा से प्रार्थना की गई कि यह क्या हो रहा है क्या आप हमें जीने न देंगे? 

क्या आपके पैर में एक कांटा लगता है तो हम सबका जीवन मुश्किल हो जाएगा? कोई और सरल रास्ता खोजें।

और तभी एक बूढ़े आदमी ने आकर राजा को कहा, मैं यह जूता आपके लिए बना लाया हूं, इसे पहन लें, कांटा फिर आपको न गड़ेगा और हमारा जीवन भी बच जाएगा।

राजा हैरान हुआ। इतना सरल उपाय भी हो सकता था क्या? पैर ढंके देखकर वह चकित हो गया। क्या कोई इतना बुद्धिमान मनुष्य भी था जिसने इतनी सरलता से बात हल कर दी, जिसे लाखों विद्वान हल न कर सके। करोड़ों रुपया खर्च हुआ, हजारों लोग परेशान हुए इतनी सरल बात थी।

और सारे पंडित, सारे विद्वान क्रोध और ईष्या से भर गए- यह बूढा आदमी खतरनाक था। इस सब के प्रति, इस बूढ़े आदमी के प्रति, उन सबके मन में तीव्र रोष भर गया। उन्होंने कहा, जरूर इस आदमी को शैतान ने ही सहायता दी होगी। क्योंकि हम इतने विचारशील लोग नहीं खोज पाए जो बात, इसने खोज ली है। जरूर इसमें कोई खतरा है।

राजा को उन्होंने समझाया। यह जूता खतरनाक सिद्ध होगा, शैतान का हाथ इसमें होना चाहिए। क्योंकि हमारी सारी बुद्धिमत्ता जो नहीं खोज सकी, यह बूढा आदमी कैसे खोज लेगा? राजा को उन्होंने भड़काया, समझाया। राजा भयभीत हो गया। उस बूढ़े आदमी को सूली दे दी गई। वह पहला समझदार आदमी सूली पर चढ़ा। और उसके बाद जितने लोगों ने यह सलाह दी है कि कृपा करें, पृथ्वी को परेशान न करें, अपने पैर ढंक लें, उन सभी को सूली दी जाती रही है।

शायद इसीलिए वह पहला क्रांतिकारी व्यक्ति जिसने जूते की ईजाद की थी, उसके वंशज आज भी अपमानित हैं।

 इस वजह से कि सारी दुनिया में सभी मनुष्यों का एक ही प्रश्न है दुख के कांटे जीवन को पीड़ित किए रहते हैं। अशांति के कांटे, चिंता के कांटे, अज्ञान और अंधकार के कांटे गड़ते हैं और कोई उपाय समझ में नहीं आता कि इनसे कैसे बचा जाए। और सभी लोग बुद्धिमानों की, तथाकथित बुद्धिमानों की सलाह मानकर सारी पृथ्वी को ढंकने की आयोजना में लग जाते हैं अपने को छोड़कर, अपने को भूलकर। अपने पैर को ढंकने की सीधी सी युक्ति किसी की भी समझ में नहीं आती।


इतनी सीधी युक्ति है, लेकिन इस जमीन पर दस-पांच ही ऐसे लोग हुए हैं, जिन्होंने अपने पैर ढंके हों। अधिक लोग पृथ्वी को ही बदलने की कोशिश करते रहे हैं। और ये अधिक लोग, जितनी इन्होंने कोशिश की है, जमीन को ढंक देने की, धूल-कांटों से अलग कर देने की, उतनी ही जमीन मुश्किल में पड़ती चली गई। 

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