मानव-धर्म आबाद रहे,डी कुमार--अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी /राज.)


दुर्गेश मेघवाल,बून्दी /राज

मानव-धर्म गीत/प्रार्थना

           मानव-धर्म आबाद रहे...
अब तो कर दो प्रभुजी किरपा,

           मानव-धर्म को सजा सकूँ ।

धर्म कभी ना कट्टर होवे ,
           मानव-मानव से बचा सकूँ ।

अब तो कर दो……


पीड़ित भी हूँ ,कुंठित भी हूँ,

             मन भी मेरा सुलग रहा ।

मानव-मानव को, क्षत-विक्षत करके,

         मन ही मन क्यों पुलक रहा ?

उनको तुम सद्बुद्धि देना,

          ' विष ' को मैं भी पचा सकूँ ।

अब तो कर दो प्रभुजी किरपा,

          मानव-धर्म को सजा सकूँ ।

धर्म कभी ना कट्टर होवे ,

           मानव-मानव से बचा सकूँ ।

अब तो कर दो……


 जग-जीवन यह जंगल जैसा,

             डर मानव से डरा हुआ ।

आतंक-आग से जले मानवता,

           उनका मन क्यों मरा हुआ ?

'अजस्र ' वो शक्ति मुझको दे दो,

            सोए जमीरों को जगा सकूँ। 

अब तो कर दो प्रभुजी किरपा,

           मानव-धर्म को सजा सकूँ ।

धर्म कभी ना कट्टर होवे ,

           मानव-मानव से बचा सकूँ ।

अब तो कर दो……


आग जो दी तुमने , मेरे हृदय में,

         बुझे दीपकों को,जला सकूँ ।

मन को ही ना मैं ,दाहक कर लूँ ,

          जग विस्फोट से बचा सकूँ ।

' सारथी ' मेरे , तुम बन जाओ,

         ' ग़दर ' तो मैं भी मचा सकूँ ।

अब तो कर दो प्रभुजी किरपा,

           मानव-धर्म को सजा सकूँ ।

धर्म कभी ना कट्टर होवे ,

           मानव-मानव से बचा सकूँ ।

अब तो कर दो……


धर्म-सनातन ,शुद्र घर जन्मा,

            छूत-अछूत में भरमाया ।

जो गुणों , पांडित्य भी पाकर ,

        क्यों ' दलित ' दर्जा पाया ?

मन से दबे ,मन-कुचलों को मालिक ,

         विश्वास तुम्हारा बंधा सकूँ ।

अब तो कर दो प्रभुजी किरपा,

         मानव-धर्म को सजा सकूँ ।

धर्म कभी ना कट्टर होवे ,

         मानव-मानव से बचा सकूँ ।

अब तो कर दो……


रची थी तुमने, जो वो सृष्टि,

          रंग विकृत क्यों आज हुए ?

जिस धरती , खुशियों हरियाली,

          उसका रंग क्यों लाल हुए ?

रंग कल्पना ' अजस्र ' ही भर कर ,

        आनंद-रंग को मैं जमा सकूँ ।

अब तो कर दो प्रभुजी किरपा,

           मानव-धर्म को सजा सकूँ ।

धर्म कभी ना कट्टर होवे ,

           मानव-मानव से बचा सकूँ ।

अब तो कर दो……


    ✍️✍️ *डी कुमार--अजस्र(दुर्गेश मेघवाल,बून्दी /राज.)*

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