बच्चे को नासमझ न समझे

 

                   बच्चे को नासमझ न समझे

       बच्चा एक बरस का तो क्या एक दिन का भी हो, तो उसको इतना छोटा और नासमझ मत समझिए, कि आप उसके सामने ऐसे बुरे काम करने के लिए तैयार हो जाए, जो बड़े बालक के सामने नहीं कर सकते हो।

      छोटे से छोटा बच्चा सब समझता है, सिर्फ बोल नहीं सकता। अगर ऐसा ना होता तो वह एक साल भर में तुतला कर और तीन बरस का होने तक साफ-साफ ना बोल सकता।

     बच्चा आपका कहा हुआ नहीं करता, आपके किए हुए की नकल करता है

      छोटे से छोटा बालक हर वक्त आप से कुछ न कुछ सीखता है। इसलिए बच्चे के सामने आप ऐसा कोई काम न कीजिए जिसे आप नहीं चाहते कि बच्चा करें। उदाहरण के लिए अगर आप यह चाहते हैं कि बच्चा आपकी कीमती चीजें ना फेंके, तो आपको चाहिए कि आप बच्चे के सामने केले का छिलका भी बेपरवाही से न फेंकें। झाड़ू से झाड़ा हुआ कूड़ा तक अपने बच्चे के सामने तरीके से उठाना चाहिए और जाकर कूड़े के बर्तन में डालना चाहिए।

           पहला पाठ उसने मां से सीखा और दूसरा आपसे

     अगर आप अपनी पत्नी के हाथ से कोई चीज ले रहे हैं और पत्नी देना नहीं चाहती, तब याद रखिए कि आप अपने पास बैठे बच्चे को बहुत बुरी सीख दे रहे हैं। बच्चा बड़ा होकर कभी अपने हाथ की चीज राजी से नहीं देगा और दूसरे की चीज छीनने के लिए तैयार रहेगा। पहला पाठ उसने मां से सीखा और दूसरा आपसे।

       सही खिलौने बालकों के लिए सच्चे गुरु साबित होते हैं

    बालकों के लिए खूब खिलौने खरीदने चाहिए क्योंकि खिलौने ही तो बालकों के लिए सच्चे गुरु साबित होते हैं। खिलौनों पर पैसा खर्च करना पैसा बर्बाद करना नहीं है, अगर बच्चा उन खिलौनों से पाठ सीख सकता है। अगर खिलौनों से बच्चा कुछ नहीं सीखता है, तो खिलौनों पर पैसा बर्बाद करना बेकार है।

      महीने भर का बालक भी रंग-बिरंगे खिलौने से पाठ सीखाता है। उसके लिए हर चीज खिलौना है। उसके पालने पर अगर रंग-बिरंगी कागज की पन्नीयाँ बांधी जाए और वह इतनी ऊंची हो कि उन तक उसकी उंगली तो पहुंच सके, पर पकड़कर खींच न सके तो वह उनसे घंटों खेला करता है। कतरन की जगह गेंदे भी हो सकती है। गेंदे के फूल भी हो सकते हैं।

    कौन सा खिलौना किस काम के लिए है, यह जानते तो सब है, पर ध्यान नहीं देते। रंगीन खिलौने आंख के लिए होते हैं। बजते खिलौने कान के लिए होते हैं। मीठे खिलौने जीभ के लिए होते हैं। गुदगुदाते और कड़े खिलौने स्पर्श इंद्रियों के लिए होते हैं। बच्चे उन्हें छू कर ही आनंद लेता है और सीखता है। नाक के लिए खिलौनों का रिवाज नहीं है। क्योंकि तरह-तरह के फूल हर जगह पाए जाते हैं।

    चलते फिरते खिलौने, मानो वैज्ञानिक खिलौने सब इंद्रियों पर तो असर डालते ही है, बच्चे के मन को भी प्रसन्न करते हैं, कल्पना शक्ति को भी चमकाते हैं। मगर यह सब होता उसी वक्त है जब मां-बाप बच्चों के साथ खेल रहे होते हैं।

                  बच्चा ज्ञान का बेहद भूखा होता है

     बच्चा ज्ञान का बेहद भूखा होता है। और उस ज्ञान के लिए तो वह लालायित रहता है, जिसमें शरीर को कुछ कष्ट हो। बालक पानी लाने के लिए या और कोई चीज लाने के लिए, घास खोदने के लिए, झाड़ू लगाने के लिए जितना तैयार मिलेगा, उतना पढ़ने के लिए नहीं, क्योंकि अक्षर ज्ञान में शरीर श्रम नहीं होता। बच्चे से यह आशा बेकार है कि वह ऐसे काम, जिनमें मन लगने को कोई जगह नहीं है, वह अपने आप कर लेगा। ऐसे काम तो पास बैठा कर ही कराने चाहिए। लिखने का काम ऐसा ही काम है।

    आप यह चाहते हैं कि बच्चा आपका कहना माने

    जहां आप यह चाहते हैं कि बच्चा आपका कहना माने, वहां आपको यह भी चाहिए कि आप बच्चे का कहना माने। हर एक बच्चा मां बाप क्या नौकर तक का कहना मानने में बेहद आनंद मानता है। दूसरी बात यह कि हर एक बच्चा काम करने को हमेशा तैयार मिलेगा।

     अगर किसी बच्चे को आप ने यह आदेश दिया है कि वह आपको पानी पिला दे और उसने आपके आदेश के जवाब में हाँ भी कर दिया है और फिर भी अगर वह ना अपना खेल छोड़कर उठता है और न पानी ला कर देता है, तब यह न समझना चाहिए कि बच्चे ने आप के आदेश को माना नहीं यानी कहना मानने से और काम करने से इनकार किया है। असली बात यह है कि जो हां बच्चे के मुंह से निकली थी, वह अंत:स्थल से निकली थी, जो हमेशा कहना मानता है, जिसे कहना मानने की आदत है, पर उस कहे के अनुसार काम करने का हुक्म देता है ऊपर का मन, और बच्चे का ऊपर का मन उस वक्त खेल में लगा था। आपका आदेश यूं समझिए बच्चे ने सुना ही नहीं बच्चे के अंत:स्थल ने सुना। और उसी ने अपना आदेश देकर बच्चे से हां कहलवा दी। आपको इस मामले में अगर जरा भी संदेह हो तो आप बच्चे से पूछ कर इस बात की सच्चाई को जान सकते हैं इसलिए खेलते हुए बच्चे से कोई चीज नहीं मंगवानी चाहिए। उसे अपने पास बुला कर तब कोई आदेश देना चाहिए वह आपका का कहा कभी नहीं टालेगा।

        बच्चे को दंड का डर व लालच न सिखाए

    ऐसी बात, जो मां बाप के लिए भी बुरी है और बच्चे के लिए भी बुरी है, वह है बच्चों से लालच देकर काम कराना। और इस भूल से बचना माता-पिताओं के लिए बेहद मुश्किल है। क्योंकि इससे फौरन तो काम हो जाता है, पर फिर बच्चे बिना लालच कभी काम नहीं करता। यह पाठ बच्चे के लिए बेहद जरूरी है कि काम-काम के खातिर होना चाहिए। काम करने से जो आनंद प्राप्त होता है, वह इनाम से हजार गुना बढ़कर होता है।

    दंड का डर दिखाकर बालक से काम लेना बहुत ही बुरा है काम का हुक्म देकर उससे काम करा ही लेना चाहिए। काम कर चुकने के बाद तुरंत भी शाबाशी दी जा सकती है और अगर कोई मां-बाप इतने समझदार हो कि तुरंत शाबाशी देना अभी हानिकारक समझे तो कुछ देर बाद भी उसके कारनामे का बखान करके बच्चों की हिम्मत बढ़ाई जा सकती है।

   बालक के लिए इनाम, सजा, होड़ घर में बेहद निकम्मी चीजें

    होड़ से काम करने की आदत भी बच्चों में नहीं डालना चाहिए। नहीं तो जब भी अकेले होंगे काम में आनंद न ले सकेंगे। किसी संस्था के लिए इनाम, सजा, होड़ तीनों अपनी-अपनी जगह अच्छी चीजें हैं, पर घर में बेहद निकम्मी चीजें। घर में यह तीनों बालकों के उत्साह को घटाती तथा उसको दूषित करती है। यही चीजें संस्था में बड़े काम की है। पर संस्था वाले को भी चाहिए कि वह सोच समझ कर ही इसका प्रयोग करें।

   काम करता हुआ बालक अगर गिर पड़े, तो वह फटकार का हकदार नहीं होता, सत्कार और शाबाशी का हकदार होता है। बच्चे से यह आशा बेकार है कि वह गिरकर या चोट खा कर फिर उस काम को नहीं करेगा। ऐसा होता तो वह तरक्की ही न कर पाता।

 

    बच्चे को तमीज सिखाने की जरूरत नहीं खुद तमीजदारी बरतते  

    आप बच्चे पर जब भी नाराज हो, तो उस वक्त ना सही, किसी वक्त तो यह सोचिए कि हमारी नाराजगी कहां तक ठीक थी? आप जब भी किसी बच्चे को किसी बेअदबी के लिए पीट रहे होते हैं, तो आपको मालूम है, आप किस को पीट रहे होते हैं?

   आप अपने आप को पीट रहे होते हैं, अपनी संगिनी को पीट है होते हैं या अपनी मां को पीट रहे होते हैं या अपने बाप को चपत लगा रहे होते हैं। क्योंकि बच्चा जो भी बेअदबी करता है, उसको उसने आपसे या अपनी मां, दादी और बाबा से सीखा होता है।

    बच्चे को तमीज सिखाने की जरूरत नहीं। अगर आप तमीजदार है और बच्चे के साथ तमीजदारी बरतते हैं, तो बच्चा आपके साथ ही नहीं, सबके साथ तमीज बरतेंगा। बच्चे को सीख ना दीजिए। उसको तो सीख पर अमल करके दिखाइए।

 

   जब भी आप घर में कुछ बैग झोला लेकर प्रवेश करते हैं, तो सबसे पहले उस बैग या झोले को खोलकर बच्चे को दिखला दीजिए। नहीं तो वह आपकी बैग या झोले को जरूर खोलेगा।

    जो बच्चे बार-बार चीज मांगने के आदी होते हैं, उनकी यह आदत आसानी से छुड़ाई जा सकती है। अगर चीज बांटने का काम उनके सुपुर्द कर दिया जाए।

            बच्चा चीजें तोड़ेगा फोड़ेगा नहीं तो सीखेगा कैसे

   जब बच्चा कोई नुकसान कर दे, तो उस पर नाराज ना होना चाहिए और पिटना तो चाहिए ही नहीं। यह दोनों बातें बच्चे के हक में तो अच्छी है, पर आपके हक में अच्छी नहीं है। क्योंकि वह पीटकर कभी चीजें बिगाड़ना नहीं छोड़ेगा। वह चीजें खराब करने से बाज नहीं आएगा। उसे पीटकर आपने जब बदला ले लिया, तो वह समझता है कि मैंने नुकसान के दाम चुका दिए।

बच्चे से यह आशा रखना कि वह चीजें तोड़ेगा फोड़ेगा नहीं, बेकार है। क्योंकि वह उसका स्वभाव है। वही उसकी ज्ञान प्राप्ति का मार्ग है।

     किसी बच्चे को अयोग्य समझना अपनी अयोग्यता साबित करना है। हम बच्चे को जब भी मूर्ख, गधा, उल्लू कह कर संबोधित करते हैं, तब या तो हम अपने क्रोध का परिचय दे रहे होते हैं या मूर्खता का।

    हम जब भी बच्चे को बहादुर, समझदार आदि शब्दों से संबोधित कर रहे होते हैं, तब हम बच्चे पर यह असर तो जरूर डाल रहे होते हैं कि वह अपने आप को नासमझ न समझे।

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2 टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
बहुत ही बढ़िया जानकारी
Sudha Devrani ने कहा…
बच्चे को तमीज सिखाने की जरूरत नहीं खुद तमीजदारी बरतते
बहुत खूब ....सही कहा बच्चे सिखाने से नहीं हमारे व्यवहार से सीखते हैं।
बहुत ही उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक लेख।