रोटी कपड़ा और मकान
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मैं बचपन में जब पढ़ता था
मन ही मन कुछ गढ़ता था
सामाजिक विज्ञान का पर्चा पाया
जिसका पहला ही प्रश्न आया
मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएँ
उत्तर था-तीन
रोटी कपड़ा और मकान।
उत्तर से मैं था अंजान,
जिसका मुझको हुआ न ज्ञान।
जब मैं जग में बड़ा हुआ
अपने पैरो पर खड़ा हुआ।
ढके तन, मिले भोजन
रहने को एक ठिकाना,
मैंने तो बस इतना जाना।
उम्र बीती मैं बूढा हुआ
ले सहारा लाठी का
मैं खड़ा हुआ।
मैं बेचारा समय का मारा
फिरता हूँ मैं मारा-मारा
मिटने वाला मरने वाला
धक्के खाकर गिरने वाला
आदर्शों के आगे पीछे
दौड़ा करता मारा-मारा
घर में एक दिन झगड़ा हुआ
पुछा मैंने झगड़े की जान
बेटा बोला
रोटी कपड़ा और मकान
कैलाश मण्डलोई "कदंब"
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