क्यों मिला जीवन तुझे?

क्यों मिला जीवन तुझे
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सुगंध से सुरभित चमन है
फूल क्या यह जानता हैं?
दर्द होता है चुभन से
शूल क्या पहचानता हैं?
सत्य को पहचान प्रणी
आत्म मंथन कर ले
आत्म श्वास भर ले।
भोर, धूप, सांझ, रात
शिखर, नदी, वृक्ष पात
करते है मौन बात
बात ध्यान धर ले
सत्य को पहचान प्रणी 
आत्म मंथन कर ले
आत्म श्वास भर ले।
जड़-वैभव सत्य ज्ञान
चेतन को असत्य मान
जीवन सरि का जल
बहा दिया हर पल
किस हेतु जगत में आया
क्यों मिला जीवन तुझे
इस ज्ञान को भुला दिया 
लो पत्ती पेड़ से गिरी
मृत्यु है सत्य आत्म स्वर गुंजा
जीवन सशंकित कि न जाने
किस क्षण सपना बीते
आशा है जीवन, निर्भीक मृत्यु के तांडव नृत्य में 
अभय हो आत्म स्वर, 
आत्म श्वास भर ले
सत्य को पहचान प्रणी आत्म मंथन कर 
न कभी आत्म मंथन किया 
पुत्र, पत्नी, पिता, मात, स्नेहीजन, 
सखा, भ्राता संग व्यर्थ ही जिया
क्या अपना क्या पराया
ये जग तो लगता सपना 
सब लुट गया उम्र के चढ़ाव पर
समझ नहीं पाया मन
क्या है फलसफा जीवन का?
यह बताओ कौन कितना जान पाया?
जानता वह व्यक्त कर पाता नहीं
और जो अव्यक्त को अभिव्यक्त करता
वह समझ से दूर है ज्ञाता नहीं
सत्य को पहचान प्राणी आत्म मंथन कर 
आत्म श्वास भर ले…

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3 टिप्पणियाँ

Arpita ने कहा…
बहुत खुबसूरत
जी सादर धन्यवाद अर्पिता जी
जी सादर धन्यवाद अर्पिता जी